दिल्ली एवं मुम्बई कोर्ट ने झूठे रेप का आरोप लगाने वाली लड़कियों को लगाई कड़ी फटकार..!!!
नई दिल्ली : दुष्कर्म के मामलों को लेकर दिल्ली की एक कोर्ट ने कहा है कि कई बार दुष्कर्म के मामलों में वो महिलाएं भी आरोप लगाती हैं जो पहले तो पुरुष के साथ आपसी सहमति से रिश्ता बनाती हैं लेकिन जब रिश्ता खत्म हो जाता है तब वो बदला लेने की नीयत से कानून को हथियार की तरह इस्तेमाल करती हैं।
दिल्ली एवं मुम्बई कोर्ट ने झूठे रेप का आरोप लगाने वाली लड़कियों को लगाई कड़ी फटकार..!!! |
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि 12 दिसंबर 2013 को नौकरी दिलाने के नाम पर उसके साथ दुष्कर्म किया गया था। पीड़िता के बयान के आधार पर आरोपी शख्स पर विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया। एडिशनल सेशन जज संजीव जैन ने कहा, 'मेरा ऐसा मानना है कि आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच शारीरिक संबंध आपसी सहमति से बना था।
यह शिकायत पूरी तरह से गुस्से का नतीजा है जिसमें दोनों पार्टियों के बीच कमीशन की पेमेंट को लेकर लड़ाई हुई। अभियोग पक्ष अपना केस साबित करने में नाकाम रहा।'
जैन ने इस बात की ओर भी ध्यान दिया कि शिकायतकर्ता का बयान एक समान नहीं था। कोर्ट ने पाया कि चीफ के सामने परीक्षा के दौरान शिकायतकर्ता महिला प्रतिपक्षी बन गई।
कोर्ट ने कहा, 'उसने यह बयान नहीं दिया कि उसके साथ दुष्कर्म हुआ था। उसने यहां तक कह दिया कि उसे मेडिकल परीक्षण के लिए नहीं ले जाया गया था और उसे याद भी नहीं है कि उसने क्या बयान दिया था।'
अभियोग पक्ष का कहना था कि अगर ये आपसी सहमति से बना रिश्ता होता तो महिला कभी भी शिकायत करने पुलिस में नहीं जाती। लेकिन कोर्ट अभियोग पक्ष की इस दलील से सहमत नहीं हुआ और आरोपी को बरी कर दिया गया।
बॉम्बे हाईकोर्ट - ब्रेकअप के बाद रेप का आरोप नहीं लगा सकती लड़की..!!
मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि शादी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाने के हर मामले को रेप नहीं माना जा सकता। 21 वर्षीय युवक की जमानत याचिका मंजूर करते हुए कोर्ट ने यह कहा। युवक की प्रेमिका ने ब्रेकअप के बाद उस पर रेप का आरोप लगाते हुए केस दर्ज कराया था। जस्टिस मृदुला भाटकर ने कहा कि एक पढ़ी-लिखी लड़की जो शादी से पहले शारीरिक संबंधों के लिए राजी हुई है उसे अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए।
'लड़कियां संबंध बनाती हैं लेकिन जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं'
जस्टिस ने कहा, 'धोखाधड़ी के जरिए शारीरिक संबंधों की रजामंदी हासिल करने के मामले अलग हैं लेकिन हर केस में यह नहीं माना जा सकता है।
रिकॉर्ड के लिए कुछ तो सबूत होना चाहिए कि लड़की ने शारीरिक संबंध बनाने के लिए हामी भरी थी। सिर्फ शादी का वादा ऐसे मामलों में आरोप की वजह नहीं बन सकता।'
जज ने कहा कि जब समाज बदल रहा है तो इसके साथ नैतिकता का भार भी साथ चल रहा है। उन्होंने कहा, 'कई पीढ़ियों ये यहां नैतिकतावादी टैबू है कि यह लड़कियों की जिम्मेदारी है कि शादी के वक्त वह वर्जिन रहें, लेकिन आज के समय में युवा पीढ़ी अलग-अलग तरीकों से एक-दूसरे से घुली-मिली है और सेक्सुअल एक्टिविटी के बारे में काफी जागरूक भी है। बदलाव हो रहे हैं लेकिन समाज में अभी भी नैतिकता का बोझ है। समाज में अभी भी शादी से पहले सेक्स प्रतिबंधित माना जाता है। ऐसी परिस्थितियों में एक लड़की जो किसी लड़के से प्यार करती है और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाती है लेकिन अपने फैसले के बारे में जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।'
'रिलेशनशिप खत्म होने बाद बन गया है ये ट्रेंड'
कोर्ट ने कहा कि रेप के ज्यादातर मामले रिलेशनशिप में दरार आने के बाद दर्ज कराए जा रहे हैं जो कि एक ट्रेंड बन चुका है। कोर्ट लड़की की मुश्किलों के साथ आरोपी की आजादी और जिंदगी के बारे में भी सोचेगा। कोर्ट ने अपने पुराने आदेश को भी दोहराया जिसमें कहा गया था कि बालिग होने के बाद एक पढ़ी लिखी लड़की शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने को लेकर फैसला लेने में सक्षम है और इसके अंजाम के बारे में भी सोच समझ सकती है।
आपको बता दें कि दिल्ली में बीते छह महीनों में 45 फीसदी ऐसे मामले अदालत में आएं जिनमें महिलाएँ हकीकत में पीड़िता नहीं थीं, बल्कि छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होने या फिर पुरुषों द्वारा माँगें पूरी न होने पर बलात्कार का केस दर्ज कराया गया था ।
दिल्ली महिला कमीशन के आँकड़ों के अनुसार इनमें से 53.2% मामले झूठे हैं !
छह जिला अदालतों के रिकॉर्ड से ये बात सामने आई है कि बलात्कार के 70 फीसदी मामले अदालतों में साबित ही नहीं हो पाते हैं ।
अब ये सोचिये कि जिस पुरुष पर झूठा रेप का केस किया जाता है, उसका जीवन कितना अस्त-व्यस्त हो जाता होगा, समाज में अपमानित होने से ले कर काम-रोजगार पर कितना असर होता होगा ? यह तो भुक्तभोगी सदस्य व उसका परिवार ही समझ सकता है ।
विचार कीजिये कि अगर एक बार ऐसा आरोप आप पर लग जाए । फिर चाहे आप दोषमुक्त भी क्यों न छूट जाएँ, लेकिन समाज सिर्फ आप पर लगे आरोप को याद रखेगा ।
ऐसा जिनके साथ हुआ या हो रहा है क्या उसकी पीड़ा का एहसास कानून लगा सकता है ?
क्या कानून उन निर्दोषों के वो दिन वापिस लौटा सकता है जो निर्दोष होने के बावजूद भी उन्हें जेल में बिताने पड़े !!
कठोर कानून बनाने से क्या बलात्कार संबंधी केस रूक गए ???
उल्टा पहले से अधिक बढ़ गए हैं क्योंकि समस्या का समाधान करने की कोशिश ही नहीं की गयी है।
सिनेमा, अश्लील साहित्य, समाचार पत्र-पत्रिकाओं, अश्लील वेबसाइटों एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया की वजह से विदेशों की तरह हमारे देश में भी बलात्कार, हत्या जैसे दुष्कर्मों को बढ़ावा मिल रहा है ।
दुष्कर्म को बढ़ावा देनेवाले कारकों को रोकने की जरूरत सबसे पहले है । यदि सख्त कानून से बलात्कार की घटनाओं पर अंकुश सम्भव होता तो नये बलात्कार निरोधक कानून बनने के बाद बलात्कार की शिकायतों (कम्प्लेंट्स) में 35% की वृद्धि नहीं होती ।
केवल कानून और डंडे के जोर से सच्चा सुधार नहीं हो सकता । सच्चे और स्थायी सुधार के लिए, बलात्कार जैसे नृशंस अपराधों को रोकने के लिए संयम-शिक्षा पर बल देने की आवश्यकता है ।
इसके लिए संयम-शिक्षा तथा सच्चे सात्त्विक मूल्यों को पुनः स्थापित करना होगा । जो संत- महापुरुष इस कार्य को देश में कर रहे थे उनपर ही षड्यंत्रकारियों ने झूठा आरोप लगवाकर जेल भेज दिया ।
इससे पता चलता है कि कुछ स्वार्थी राष्ट्र-विरोधी ताकतें कानून की आड़ लेकर भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की बुरी मंशा रखती हैं । संत-महापुरुष ही समाज के प्रहरी हैं, हमें उन पर हो रहे इस आघात को रोकना होगा ।
साथ ही पॉक्सो व बलात्कार निरोधक कानूनों की खामियों को दूर करना होगा तभी समाज के साथ न्याय हो पायेगा अन्यथा एक के बाद एक निर्दोष सजा भुगतने के लिए मजबूर होते रहेंगे ।
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