सावधान : भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए मीडिया द्वारा चल रहा बड़ा भारी षड़यंत्र !!
फिल्म अभिनेता सलमान खान के विरोध में जोधपुर कोर्ट में 18 वर्ष से अवैध तरीके से हथियार रखने और उनसे शिकार करने को लेकर केस चल रहा है।
कल कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाएगा। फैसला सुनने के लिए सलमान खान को कोर्ट में हाजिर रहने का आदेश दिया गया है।
सावधान : भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए मीडिया द्वारा चल रहा बड़ा भारी षड़यंत्र !! |
अब एक बड़ा अहम सवाल है कि कोर्ट तो अपना काम कर रही है कोर्ट को जो फैसला सुनाना है वो सुनाएगी लेकिन मीडिया पहले से सलमान खान के लिए बड़े मानवाचक शब्दों का प्रयोग कर उसे निर्दोष दिखाने की भरपूर कोशिश करेगी ।
ये पहली बार नही हुआ है । हर बार ऐसा ही होता है पिछली बार भी सलमान को सजा सुनाने से पहले ही कोर्ट पर प्रभाव डालने के लिए उसे निर्दोष दिखाने का भरपूर प्रयास किया गया था जब कोर्ट ने सजा सुनाई थी तो मीडिया ऐसे विधवा विलाप करने लगी जैसे कोई उनके हितैषी की मृत्यु हो गई हो।
जब सलमान को जमानत मिल गई तो मीडिया जश्न मनाने लगी जैसे कोई उनका हितैषी मौत के मुख से वापिस आ गया हो ।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि केवल सलमान ही नही जब किसी आतंकवादी को भी सजा सुनाई जाती है तब भी मीडिया खूब छाती पीटकर रोने लगती है ।
पिछली बार आतंकवादी याकूब मेमन को फाँसी देनी थी तो मीडिया उसके बचाव में खड़ी हो गई और दिखाने लगी
कि बेचारा मासूम है,
उसके बच्चों का क्या होगा?
बीबी का क्या होगा?
घर-परिवार का क्या होगा ? आदि आदि
दिखाकर कोर्ट को प्रभावित कर रही थी और जनता में सहानुभूति का वातावरण बनाने की कोशिश कर रही थी ।
लेकिन जनता जानती है कि एक आतंकवादी की सजा क्या होनी चाहिए। जिसने एक नहीं कई परिवारों को मौत के घाट उतार दिया, कई महिलाओं के सुहाग छीन लिए , कई बच्चो को अनाथ कर दिया।
ऐसे आतंकवादियों के प्रति आखिर मीडिया सहानुभूति रखती क्यों है..???
एक तरफ मीडिया सलमान खान जैसे अभिनेता, याकूब मेनन जैसे आतंकी को मानवाचक शब्दों में संबोधित करती है दूसरी ओर मीडिया हिन्दू संतो के लिए तुच्छ शब्दों का प्रयोग करके उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करती है ।
ऐसा क्यों..???
जब किसी नेता अभिनेता को सजा होती है तो भी मीडिया उनकी सजा माफ करवाने के लिए दिन-रात समाज के सामने उन्हें निर्दोष दिखाने का प्रयास कर कोर्ट को प्रभावित करती है ।
दूसरी ओर केवल आरोप लगने पर हिन्दू कार्यकताओं या हिन्दू संतों को न्यायिक हिरासत में रहने के बावजूद उनकी छवि को समाज के सामने धूमिल करती है और उनकी जमानत पर तो जानबूझ कर उनके खिलाफ जहर उगलती है । जिससे कोर्ट भी प्रभावित होकर, न्यायाधीश भी दवाब में आकर सामान्य जमानत तक भी नही दे पा रहे ।
ऐसे ही कई ताजा उदाहरण हैं।
जैसे बिना अपराध साध्वी प्रज्ञा ठाकुर 9 साल से जेल में, कर्नल पुरोहित 7 साल से, स्वामी असीमानंद 7 साल से, संत आसारामजी बापू साढ़े तीन साल से,नारायण साईं 3 साल से और धनंजय देसाई 2 साल से जेल में हैं ।
उनकी जमानत जब कोर्ट में डाली जाती है तब मीडिया उनके खिलाफ खूब जहर उगलती है जिसका परिणाम आता है कि इन हिन्दुत्वनिष्ठों को कोर्ट जमानत तक नहीं दे पाता ।
क्यों मीडिया की नजर में सिर्फ देश के हिन्दू संत ही दोषी हैं ?
क्यों मीडिया समाज तक सच्चाई नहीं पहुंचाती..???
इसका सही और सरल जवाब ये है कि भारतीय मीडिया विदेशी फण्ड से चलती है और उन्हीं के इशारों पर यहाँ काम करती है ।
हमारी भारतीय संस्कृति अति प्राचीन दिव्य और महान है । उस पर विदेशियों ने अनेक बार आक्रमण किये लेकिन हमारी भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए हमेशा हिन्दू साधु-संतों एवं हिन्दू कार्यकताओं ने गांव-गांव नगर-नगर जाकर लोगों को जागृत किया जिससे हमारी दिव्य संस्कृति अभी भी जगमगा रही है ।
अब इसको तोड़ने के लिए उन्होंने नया तरीका अपनाया हिन्दू साधु-संतों को मीडिया द्वारा खूब बदनाम करो जिससे उनके प्रति भारतवासियों की श्रद्धा कम हो जाये और भारतवासियों का नैतिक पतन हो जाये और फिर से एक बार देश को गुलाम बनाया जा सके ।
विश्व हिन्दू परिषद के मुख्य संरक्षक व पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय श्री अशोक सिंघलजी कहते हैं : ‘‘मीडिया ट्रायल के पीछे कौन है ? हिन्दू धर्म व संस्कृति को नष्ट करने के लिए मीडिया ट्रायल पश्चिम का एक बड़ा भारी षड़यंत्र है हमारे देश के भीतर !
मीडिया का उपयोग कर रहे हैं विदेश के लोग ! उसके लिए भारी मात्रा में फंड्स देते हैं, जिससे हिन्दू धर्म के खिलाफ देश के भीतर वातावरण पैदा हो ।’’
कई न्यायविद् एवं प्रसिध्द हस्तियाँ भी मीडिया ट्रायल को न्याय व्यवस्था के लिए बाधक मानती हैं ।
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि : ‘‘मीडिया में दिखायी गयी खबरें न्यायाधीश के फैसलों पर असर डालती हैं । खबरों से न्यायाधीश पर दबाव बनता है और फैसलों का रुख भी बदल जाता है। पहले मीडिया अदालत में विचाराधीन मामलों में नैतिक जिम्मेदारियों को समझते हुए खबरें नहीं दिखाती थी लेकिन अब नैतिकता को हवा में उड़ा दिया है। मीडिया ट्रायल के जरिये दबाव बनाना न्यायाधीशों को प्रभावित करने की प्रवृत्ति है। जाने-अनजाने में एक दबाव बनता है और इसका असर आरोपियों और दोषियों की सजा पर पड़ता है ।’’
न्यायाधीश सुनील अम्बवानी ने भी बताया कि मीडिया के कारण न्यायाधीश सुपरविजन के प्रभाव में आ जाता है । मीडिया कई मामलों में पहले ही सही-गलत की राय बना चुका होता है । इससे न्यायाधीश पर दबाव बन जाता है । न्यायाधीश भी मानव है । वह भी इनसे प्रभावित होता है ।
अतः सावधान!!
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