#तलाक तलाक तलाक...???
तीन #तलाक : #विवाद और #बहस !!
#मुसलिम समुदाय में #पति द्वारा #तीन बार #‘तलाक’ कह कर #पत्नी को #तलाक दे देने की व्यवस्था पर #सर्वोच्च न्यायालय में बहस चल रही है ।
क्या है #तीन तलाक ???
चाहे कोई भी #सूरत हो, एक #शौहर अपनी #बीवी को लगातार #तीन बार तलाक (तलाक-तलाक-तलाक) बोल दे, तो उन दोनों के बीच तलाक हो जाता है और उनकी शादी टूट जाती है । इसे ही तीन तलाक यानी #‘तलाक-ए-बिद्अत’ कहा जाता है ।
#तलाक के बाद #शौहर-बीवी का एक-साथ रहना #मुमकिन नहीं रह जाता । लेकिन इस तीन तलाक को पूरा करने का भी एक तरीका है और इसमें तीन महीने का वक्त लगता है ।
Jago Hindustani - Triple Talaq |
लेकिन इसका #गलत इस्तेमाल करते हुए लोग एक बार में ही #तीन बार #तलाक कह कर बीवी को घर से बेदखल कर देते हैं ।
यहां तक कि आज के तकनीकी दौर में #इमेल, #मोबाइल मैसेज, #व्हॉट्सएप्प वगैरह से भी #तीन बार #तलाक का संदेश भेज कर #शादी को #खत्म कर देते हैं ।
यही वजह है कि #‘तलाक तलाक तलाक’ के ये ‘शब्द-तिरकिट’ एक शादीशुदा #मुसलिम औरत की जिंदगी को एक ही झटके में #नर्क बना देते हैं ।
देशभर में ज्यादातर #मुसलिम औरतों का विरोध इसी बात से है कि अगर तलाक देना ही है, तो #तलाक अदालत के जरिये हो ।
उनका मानना है कि अगर निकाह के वक्त दोनों की रजामंदी जरूरी है, तो तलाक के लिए भी ऐसा ही कुछ होना चाहिए, न कि केवल मर्द एकतरफा फैसला कर ले ।
मर्दों को जवाबदेही से मुक्त रखना चाहता है बोर्ड !!
ऑल इंडिया #मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड की मंशा यह है कि मुसलमान मर्द घर के अंदर किसी भी तरह का अपराध-बदसलूकी-नाइंसाफी करे, उस पर किसी तरह की जवाबदेही, कानूनी कार्रवाई या रोक नहीं लगनी चाहिए।
तीन तलाक की लटकती #तलवार के साये में मुसलमान बीवी चूं तक नहीं कर सकती । यह घरेलू #आतंकवाद उसे चुप रहने पर मजबूर कर देता है ।
तीन तलाक की लटकती #तलवार के साये में मुसलमान बीवी चूं तक नहीं कर सकती । यह घरेलू #आतंकवाद उसे चुप रहने पर मजबूर कर देता है ।
आजादी से लेकर आज तक भारत के मुसलमान मर्द अपने परिवार के अंदर एक ‘#लीगल हॉलीडे’ के मजे ले रहे हैं, और यह मुमकिन हो रहा है #ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी ‘खाप पंचायत’ की प्रेशर-पॉलिटिक्स की वजह से ।
इस बोर्ड के रहते मुसलिम महिलाओं को न अपने कुरान के हक मिल सकते हैं, न ही संवैधानिक अधिकार मिल सकते हैं ।
इस बोर्ड के रहते मुसलिम महिलाओं को न अपने कुरान के हक मिल सकते हैं, न ही संवैधानिक अधिकार मिल सकते हैं ।
बोर्ड का अब तक का रिकॉर्ड है कि यह कभी भी महिलाओं के हक के लिए नहीं खड़ा हुआ । इसने जब भी सरकार से कुछ मांगा है, वह सब महिलाओं के खिलाफ ही रहा है ।
इसी बोर्ड ने मुसलमान बच्चों को शादी की न्यूनतम आयु सीमा के कानून के दायरे से बाहर रखने के लिए सरकार से गुहार लगायी थी, ताकि बाल-विवाह और जबरन-विवाह होते रहें और बेटियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, तरक्की के बारे में कोई सोच ही न सके ।
इसी बोर्ड ने मुसलमान बच्चों को शादी की न्यूनतम आयु सीमा के कानून के दायरे से बाहर रखने के लिए सरकार से गुहार लगायी थी, ताकि बाल-विवाह और जबरन-विवाह होते रहें और बेटियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, तरक्की के बारे में कोई सोच ही न सके ।
इसी बोर्ड ने 2002 में तलाक के पंजीकरण के (मुंबई हाइकोर्ट के) अदालती आदेश का विरोध किया था, ताकि मक्कार शौहरों को झूठ बोलने की आजादी बनी रहे और वे आर्थिक जिम्मेवारियों से बचने के लिए झूठ बोल सकें कि ‘तलाक तो मैंने बहुत पहले दे दिया था’, भले ही उसका कोई सबूत न हो, कोई गवाह न हो ।
तलाकशुदा मुसलिम महिलाओं के बीच तलाक पर सर्वे !!
भारतीय मुसलिम महिला आंदोलन ने अगस्त-सितंबर, 2015 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और बंगाल में तलाकशुदा मुसलिम महिलाओं के बीच एक सर्वे कराया था ।
उसमे 59 फीसदी महिलाओं के मामलों में तलाक शब्द तीन बार कह कर पति ने तलाक दे दिया, शेष मामलों में भी तलाक का फैसला एकतरफा था और पति द्वारा पत्नी को विभिन्न तरीके से बताया गया था ।
79 फीसदी महिलाओं को नहीं मिलता तलाक के बाद पति की ओर से गुजारा भत्ता !!
40 फीसदी से कुछ अधिक महिलाएं तलाक के बाद पति के घर से अपना सामान और गहने वापस नहीं ले सकी ।
33 फीसदी महिलाओं के पास अपना निकाहनामा नहीं !!
56 फीसदी महिलाओं को तलाक के बाद अपना मेहर नहीं मिल सका । जिन्हें मिला, उनमें से अधिकतर मामलों में मेहर की रकम बहुत कम तय की गयी थी । उनमें से कुछ को 501 या 786 रुपये का सांकेतिक मेहर ही मिल सका ।
45 फीसदी महिलाओं के मेहर की रकम दस हजार से कम तय की गयी थी ।
16 फीसदी महिलाओं को मेहर की तय रकम मालूम नहीं ।
54 फीसदी ने बताया कि तलाक के बाद उनके पति ने दुबारा शादी कर ली, जबकि 34 फीसदी मामलों में ऐसा नहीं हुआ ।
शीबा असलम फहमी, इसलामिक फेमिनिस्ट , एवं लेखिका कहती है कि
21वीं सदी में मुसलिम महिलाएं सिर्फ यह मांग कर रही हैं कि उनकी शादीशुदा जिंदगी बा-इज्जत, बा-हुकूक और बेखौफ हो ।
21वीं सदी में मुसलिम महिलाएं सिर्फ यह मांग कर रही हैं कि उनकी शादीशुदा जिंदगी बा-इज्जत, बा-हुकूक और बेखौफ हो ।
ऐसी न हो कि पति को चोरी करने से रोकें, तो पति तीन तलाक देकर अपनी हर जिम्मेवारी से बरी हो जाये और पत्नी बेचारी बेसहारा, बेघर, बे-वसीला सड़क पर आ जाये । ऐसा अपराध अगर एक प्रतिशत महिलाओं के साथ भी हो रहा है, तो कानून बना कर इन पीड़ितों की रक्षा करनी ही चाहिए ।
लेकिन, बस इतनी सी बात मुसलमान मर्दवादियों को हजम नहीं हो रही है, जबकि वे खुद अपने हक, बराबरी और आजादी की लड़ाई, हुकूमत और दक्षिणपंथी विचारधारा से, महिलाओं की मदद से लड़ रहे हैं ।
लेकिन, बस इतनी सी बात मुसलमान मर्दवादियों को हजम नहीं हो रही है, जबकि वे खुद अपने हक, बराबरी और आजादी की लड़ाई, हुकूमत और दक्षिणपंथी विचारधारा से, महिलाओं की मदद से लड़ रहे हैं ।
इन मर्दों को अपने फायदे के लिए संविधान, सेक्युलरिज्म, लोकतंत्र और मानवाधिकार के सभी पहाड़े याद हैं, लेकिन अपने घर की ड्योढ़ी लांघते ही ये लोग 1,400 साल पीछे चले जाना चाहते हैं । समाज में ऐसा महिला-विरोधी माहौल तैयार कर देने के बावजूद मुसलिम लड़कियां जब पढ़-लिख जाती हैं, तो वे सिर्फ अपने नहीं, बल्कि सबके खिलाफ होनेवाले अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष करती हैं । राना अय्यूब, शबनम हाशमी, सीमा मुस्तफा, सबा नकवी, जुलैखा, नूरजहां, अंजुम जैसी संघर्षशील बेटियां जब मुसलमान मर्दों के साथ हो रही नाइंसाफी की जंग लड़ती हैं, तब ये समाज से वाहवाही लूटती हैं, लेकिन यही और इनके जैसी महिलाएं जब अपने लिए इंसाफ मांगती हैं, तो मौलाना और उनके अंधभक्त इनके खिलाफ खड़े दिखते हैं ।
कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि दक्षिणपंथियों को ऐसी संघर्षशील सबला महिलाएं नहीं चाहिए, लिहाजा मुसलमान महिलाओं के पांव में बेड़ियां डालने का काम अगर उनके चचेरे भाई खुद घर के अंदर ही कर दें, तो और भी सुभीता होगी । बोर्ड और सरकार की ये नूरा-कुश्ती किस अंजाम पर पहुंचेगी यह एकदम साफ है ।
लेकिन, हमारा संघर्ष अगली सदियों तक भी जारी रहेगा, भले ही मर्दों ने तय पाया है कि मर्दों के हस्ताक्षर द्वारा, मर्दों के लिए, मर्दवादी सरकार से, मर्दानगी के साथ लड़ाई लड़ी जायेगी!
लेकिन, हमारा संघर्ष अगली सदियों तक भी जारी रहेगा, भले ही मर्दों ने तय पाया है कि मर्दों के हस्ताक्षर द्वारा, मर्दों के लिए, मर्दवादी सरकार से, मर्दानगी के साथ लड़ाई लड़ी जायेगी!
केंद्र सरकार का रुख !!
तीन तलाक के मसले पर सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने ही खुद से संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की थी । उसके बाद छह मुसलिम महिलाओं ने भी इस मसले पर अदालत में याचिका दायर की । सुप्रीम कोर्ट ने बीते पांच सितंबर को तीन तलाक के साथ ही मुसलिम महिलाओं के अधिकार पर केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए आदेश दिया था। उसी का जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने बीते 7 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था, जिसमें तीन तलाक और बहुविवाह को लेकर दलील दी गयी थी कि ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कानूनों को संविधान की कसौटी पर कसना चाहिए और जो भी पर्सनल लॉ संविधान की कसौटी पर खरे नहीं उतरते उन्हें खत्म कर देना चाहिए ।
सरकार ने हलफनामे में कहा कि तीन तलाक और बहुविवाह जैसी प्रथाएं इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है । हमारे संविधान में तीन तलाक की कहीं कोई जगह ही नहीं है और न ही मर्दों को एक से ज्यादा शादी की इजाजत है । भारत का संविधान अपने हर नागरिक को बिना किसी धार्मिक भेदभाव के बराबर का अधिकार देता है, इसलिए मुसलिम महिलाओं को भी बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए ।
सरकार का यह भी तर्क है कि जब इस्लाम धर्म शासित देशों में तीन तलाक जैसी प्रथा को खत्म कर दिया गया है, तब भारत जैसे एक धर्मनिरपेक्ष देश में यह प्रथा क्यों नहीं खत्म की जा सकती है?
सरकार का यह भी तर्क था कि भारतीय मुसलिम महिलाओं ने जिन प्रथाओं पर सवाल खड़े किये हैं, उन प्रथाओं को लेकर दुनिया के बाकी मुसलिम देशों के पर्सनल लॉ में काफी सुधार हुए हैं । फिर यह कोई तुक नहीं बनता कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मुसलिम महिलाओं के अधिकारों का ऐसी किसी प्रथा के जरिये हनन हो।
पर्सनल लॉ बोर्ड का रुख !!
ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड हमेशा से कहता आ रहा है कि तीन तलाक एक पर्सनल लॉ है और इसमें केंद्र सरकार कोई बदलाव नहीं कर सकती । बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में एक जवाब भी दाखिल किया था कि मजहबी आधार पर बने नियम-कायदों को भारत के संविधान के आधार पर परखा नहीं जा सकता है । बोर्ड मानता है कि हमारे मजहबी मामलों में यह सरकार का बेजा दखल है और भारत के संविधान ने अल्पसंख्यकों को जो धार्मिक अधिकार दिये हैं, केंद्र सरकार उन अधिकारों को छीनने की कोशिश कर रही है । बोर्ड की दलील है कि बीवी से छुटकारा पाने के लिए उसका शौहर उसे मार डाले, इससे तो अच्छा ही है कि वह तीन बार तलाक बोल रिश्ता खत्म करे ।
बहुविवाह को लेकर भी बोर्ड ने दलील दी कि एक बीवी के रहते हुए भी एक मर्द को दूसरी शादी की इजाजत है, इसलिए वह घर से बाहर अवैध संबंध नहीं बनाता या रखैल नहीं रखता । देशभर में ज्यादातर मुसलिम संगठनों में पदासीन मौलानाओं का भी यही तर्क है कि बोर्ड के कायदे-कानून कुरान पर आधारित हैं, न कि संसद ने इसे बनाया है, ऐसे में केंद्र सरकार की बातों को संविधान के सांचे में कस कर लागू करना मुमकिन नहीं हो सकता ।
विवाद की शुरुआत !!
तीन तलाक पर हालिया विवाद और बहस की शुरुआत अक्तूबर 2015 में तब हुई, जब देहरादून की 35 वर्षीय शायरा बानो के शौहर ने महज एक पत्र के जरिये तलाकनामा भेज कर उसे तलाक दे दिया । 23 फरवरी, 2016 को शायरा ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की कि ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तहत मान्यता दिये गये #तीन_तलाक को #गैर-कानूनी करार दिया जाये । इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने गत पांच सितंबर को केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ महिला आयोग को भी नोटिस भेज कर तीन तलाक पर जवाब मांगा ।
#केंद्र #सरकार ने गत 7 अक्तूबर दिये अपने जवाबी हलफनामे में तीन तलाक की मौजूदा व्यवस्था को खत्म करने का समर्थन किया । इसके विरोध में ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक का बचाव करते हुए कहा कि अदालतों को कुरान और शरिया कानून से संबंधित किसी भी मसले पर जांच करने का कोई अधिकार ही नहीं है और तीन तलाक पर केंद्र सरकार का मौजूदा विरोध पूरी तरह से गलत है । इसी मसले को लेकर आज केंद्र सरकार और शरिया के पैरोकार मुसलिम धार्मिक संगठनों के बीच देश में गरमागरम बहस छिड़ी है ।
#केंद्र #सरकार ने गत 7 अक्तूबर दिये अपने जवाबी हलफनामे में तीन तलाक की मौजूदा व्यवस्था को खत्म करने का समर्थन किया । इसके विरोध में ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक का बचाव करते हुए कहा कि अदालतों को कुरान और शरिया कानून से संबंधित किसी भी मसले पर जांच करने का कोई अधिकार ही नहीं है और तीन तलाक पर केंद्र सरकार का मौजूदा विरोध पूरी तरह से गलत है । इसी मसले को लेकर आज केंद्र सरकार और शरिया के पैरोकार मुसलिम धार्मिक संगठनों के बीच देश में गरमागरम बहस छिड़ी है ।
क्या कहता है कुरान !!
कुरान में आता है कि जहां तक मुमकिन हो सके किसी औरत को तलाक न दिया जाये । लेकिन अगर तलाक देना जरूरी हो ही जाये, तो तलाक देने के सही तरीके को अख्तियार किया जाये । कुरान में तलाक से पहले परिवार और शौहर-बीवी के बीच बातचीत के बाद सुलह पर जोर दिया गया है । यहां तक कि एकतरफा या सुलह का प्रयास किये बिना दिये गये तलाक का जिक्र कुरान में कहीं भी नहीं मिलता है । ऐसे में एक ही बार में तीन बार तलाक कह कर #बीवी को तलाक देने का सवाल ही नहीं उठता है और एक बैठक में या एक ही वक्त में तीन तलाक कह कर तलाक देना इस्लाम के उसूलों के खिलाफ है ।
यही वजह है कि मुसलिम महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करनेवाले संगठन अरसे से इस तीन तलाक को खत्म करने की मांग करते रहे हैं ।
अनेक मुसलिम #देशों में खत्म हो चुकी है तीन तलाक की प्रथा !!
दुनिया के अनेक मुसलिम देश अपने यहां तीन तलाक की प्रथा को खत्म कर चुके हैं । इसमें #पाकिस्तान, #बांग्लादेश, #अफगानिस्तान, #ईरान, #इराक, #तुर्की, मिस्र, साइप्रस, सूडान, ट्यूनीशिया, संयुक्त अरब अमीरात, सीरिया, अल्जीरिया, मलेशिया, #लीबिया, कतर, कुवैत, बहरीन शामिल हैं ।
सह-संस्थापक, भारतीय मुसलिम #महिला #आंदोलन #नूरजहां सफिया नियाज कहती है कि भारत की मुसलिम महिलाओं की बेहतरी के लिए हमारी यही मांग है कि मुसलिम फैमिली लॉ का कोडिफिकेशन (संहिताकरण) होना चाहिए । अगर एक बार मुसलिम लॉ को कोडिफाइ कर दिया गया, तो फिर तीन तलाक, हलाला आदि पर कानूनी पाबंदी लग जायेगी । जिस तरह से हिंदू मैरिज एक्ट है और अन्य धर्मों में भी फैमिली लॉ हैं, उसी तरह मुसलिम लॉ की भी जरूरत है । हम यह मांग इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि मुसलिम लॉ कोडिफाइड (संहिताबद्ध) नहीं है । मुसलिम लड़के-लड़कियों की शादी की उम्र क्या होनी चाहिए, एक से ज्यादा शादी की क्या जरूरत है, तलाक का क्या तरीका होना चाहिए, इन सारे मसलों को लेकर कोई कानून नहीं है । कहने का अर्थ है कि भारत की संसद की तरफ से मुसलिम समाज के लिए ऐसे मुद्दों पर कोई कानून नहीं बना है ।
हालांकि शाहबानो केस के बाद 1986 में एक कानून बना था, लेकिन अदालत में केस जीतने के बाद भी #शाहबानो को अपने #शौहर से गुजारा-भत्ता नहीं मिल सका । इसीलिए हम मांग कर रहे हैं कि मुसलिम फैमिली लॉ का कोडिफिकेशन हो, ताकि मुसलिम समाज के बुनियादी मसले हल हो सकें ।
मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड हमेशा यही कहता है कि कुरान के नियमों में तब्दीली नहीं की जा सकती, लेकिन वह खुद तीन तलाक को मान्यता देता है, जिसका जिक्र कुरान में कहीं नहीं है । हम यह नहीं कह रहे हैं कि मुसलिम समाज के लिए कानून बनाने में कोई अलहदा प्रक्रिया अपनायी जाये, बल्कि हम यही चाहते हैं कि कुरान में #औरतों के जो अधिकार बताये गये हैं, उन सभी अधिकारों को ही कानून में तब्दील कर दिया जाये ।
हमने #कुरान से अलग अधिकारों की कभी बात नहीं की, हम बस इतना ही चाहते हैं कि जो अधिकार हमें कुरान ने दिये हैं, वे अधिकार तो हमें चाहिए ही । #बोर्ड के चलते तो यह मुमकिन नहीं है, यह तभी मुमकिन होगा, जब उन अधिकारों को कानून में तब्दील कर दिया
जाये । जब भी हम मुसलिम #फैमिली लॉ के कोडिफिकेशन की बात करते हैं, बोर्ड या दूसरे संगठन भी यह कहने लगते हैं कि कानून बनाने से क्या फायदा होगा ?
हमने #कुरान से अलग अधिकारों की कभी बात नहीं की, हम बस इतना ही चाहते हैं कि जो अधिकार हमें कुरान ने दिये हैं, वे अधिकार तो हमें चाहिए ही । #बोर्ड के चलते तो यह मुमकिन नहीं है, यह तभी मुमकिन होगा, जब उन अधिकारों को कानून में तब्दील कर दिया
जाये । जब भी हम मुसलिम #फैमिली लॉ के कोडिफिकेशन की बात करते हैं, बोर्ड या दूसरे संगठन भी यह कहने लगते हैं कि कानून बनाने से क्या फायदा होगा ?
क्योंकि उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं कि तीन तलाक रुक जायेगा । यह तो एक प्रकार से कुतर्क हुआ । इसका मतलब तो यही हुआ कि हत्या या हिंसा रोकने के लिए देश में कोई कानून ही न बने, क्योंकि कानून से तो ये सब रुकने से रहे ।
कई देशों ने खत्म किया तीन तलाक !!
देश की 92 प्रतिशत #मुसलिम #महिलाएं ‘तीन तलाक’ को तुरंत खत्म करने पर सहमत हैं, लेकिन बोर्ड कह रहा है कि इसे खत्म नहीं किया जाना चाहिए । #मौलाना तर्क देते हैं कि कोई सरकार मुसलिम फैमिली लॉ नहीं बना सकती । यह एक गलत तर्क है । हम #लोकतंत्र में रहते हैं या तो ये जाहिल हैं या फिर जान-बूझ कर कानून नहीं बनने देना चाहते ।
कई मुसलिम #देशों ने ‘तीन तलाक’ को खत्म कर दिया है, जबकि शरीयत और कानून की आड़ में मुसलिम समाज को बरगलाया जा रहा है । अनेक मुसलिम देशों में कुरान और शरीयत के आधार पर कानून बनाये गये हैं और तमाम समाजी मसले कानून के जरिये ही हल किये जा रहे हैं, लेकिन समझ नहीं आता हम किस तरह के मुसलमान हैं कि जिसे पूरी दुनिया ने किया है, हम क्यों नहीं करना चाह रहे हैं ? #मुसलिम #धार्मिक #संगठन मुसलिम समाज को डरा रहे हैं कि कुरान में बदलाव करने की कोशिश की जा रही है, तो मैं समझती हूं कि यह एक तरह की जाहिलियत है ।
जब #भारत में हिन्दुओं के लिए तो न्यायालय तुरन्त कानून बनाती है फिर ये मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ऊपर न्यायालय क्यों लगाम नही कस रहा है ?
सभी के लिए एक ही कानून है तो मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपना अलग से #कानून क्यों चलाता है???
#मुसलिम_पर्सनल_लॉ_बोर्ड की मनमानी खत्म करके जल्द ही भारत के संविधान के अनुसार कानून बनाया जाये ।
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