कवि की कविता के माध्यम से जानिए क्या दर्दभरी जिंदगी हो चुकी है मजदूर की...
19 मई 2020

कोरोना वायरस की महामारी के चलते देश मे एकाएक लॉकडाउन शुरू हो गया जिसके कारण शहरों में चल रहा काम-काज बंद हो गया, जिनके वहाँ काम कर रहे थे श्रमिक मजदूर उन्होंने भी हाथ खड़ा कर दिया। उनके पास पैसे खत्म हो गए अब उनको अपना गांव याद आया और कुछ मजदूर पैदल ही चलने लगें, जिसके कारण उनको कितनी दिक्कतें हुई और आज कितनी परेशानी झेल रहे हैं, इस कविता के माध्यम से जानिए और आपके आसपास ऐसे कोई मजदूर हैं तो उनकी सहायता जरूर करिए।
कविता :-
मैं हूँ भारत निर्माता, आज पलायन पर मजबूर हूँ।
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भूखा हूँ, बेबस हूँ, लाचार हूँ, हाँ मैं मजदूर हूँ।
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दो वक्त की रोटी के लिए, जीवन ने कैसा मोड़ लिया।
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माँ-बाप बच्चों सहित, हमने अपने घर को छोड़ दिया।।
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पेट भरे मेरे परिवार का, इसलिए दूर यहाँ आया था।
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उज्ज्वल भविष्य का स्वप्न, इस मन को भाया था।
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सरकार ने एकाएक लॉकडाउन लगाया, मुझ पर ना रहम किया।
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रोजगार गया, मजदूरी गई, कैसा ये भयंकर जख्म दिया।।
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घर जाने को साधन नहीं, चारों तरफ अंधेरा है।
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कोई रास्ता नहीं दिख रहा, किस विपत्ति ने घेरा है।
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कोई कमाई नहीं रही, मैं घर का किराया कैसे दू।
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बीवी बच्चों माँ-बाप को, दो वक्त की रोटी कैसे दू।।
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वक्त की पड़ी इस मार को, बताओ ये गरीब कैसे सहेगा।
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रुकू तो मरू, जाऊ तो मरु, कौन सा निर्णय उचित रहेगा।।
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इसी असमंजस की स्थिति में, मेरा हर स्वप्न चूर हुआ।
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पैसे खत्म हुए, चारा ना बचा, तो घर जाने पर मजबूर हुआ।।
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चल पड़ा परिवार सहित पैदल, क्या होगा अनुमान नहीं।
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क्या है मेरे जीवन की मंजिल, मुझे अब ये भान नहीं।।
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सियासत करने वाले नेता, बस सियासत ही कर रहें।
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ये आदमखोर भेड़िए, हमारी लाशों पर राजनीति कर रहें।।
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इन लालची, स्वार्थी नेताओं ने, पूरे देश को बर्बाद किया।
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70 साल हुए आज़ादी को, पर मैं गरीबी से ना आज़ाद हुआ।।
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जहाज़ भेजा फ्री, विदेशों में, सक्षम लोगों को लाने के लिए।
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भेज ना सके एक बस-ट्रैन भी, हमें घर तक पहुँचाने के लिए।।
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सरकार बताए मुझे जरा, क्या हमें जीने का अधिकार नहीं।
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केवल दो रोटी की प्रार्थना, क्यों विधाता को स्वीकार नहीं।।
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क्या है कोई हाथ दुनिया में, जो मेरे बच्चों को प्रेम से सहलाए।
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डर और बेबसी को हटाकर, उनके चेहरे पर मुस्कान लाए।।
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क्या है कोई ऐसा सूर्य, जो मेरे जीवन में प्रकाश फैलाए।
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क्या है कोई ऐसा हवा का झोंका, जो मेरे जीवन में शीतलता लाए।।
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इन्हीं प्रश्नों में मैं उलझा हूँ, और जीने को मजबूर हूँ।
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बहुत भाग चुका जीवन में, अब थक कर चूर हूँ।
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मैं हूँ भारत निर्माता, आज पलायन पर मजबूर हूँ।
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भूखा हूँ, बेबस हूँ, लाचार हूँ, हाँ मैं मजदूर हूँ।
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-कवि सुरेन्द्र भाई
जिन मजदूरों ने भारत निर्माण में सहयोग किया आज वे दर-दर भटक रहे हैं, न उनके पास पैसे है न राशन है, कइयों के पास तो पहनने के लिए चप्पल तक नही है क्या भारत मे भोजन की कमी हो गई? नही कमी हम लोगो मे मानवता के प्रति संवेदनशीलता की हो गई है, सरकार जितना हो सके मदद कर रही है पर सभी को पता है कि सरकार जितनी घोषणा करती है उसमें बिचोलिये खा जाते हैं, गरीबों तक सुविधा पहुँच नही पाती इसलिए हमें भी इस पर ध्यान देना चाहिए, अपने आप-पास ऐसे कोई भी मजदूर जा रहें हो तो उनके लिए भोजन-पानी और रहने की व्यवस्था जरूर करियेगा जिससे उनको भी लगे कि हमने देश के निर्माण में सहयोग किया है तो जनता हमे भी सहयोग कर रही है, नही तो ठेकेदारों और सेठों ने उनसे काम निकलवा लिया पर जब उनको खिलाने ओर रहने की व्यवस्था की बात आई तो हाथ खड़े कर दिए। उनको तो भगवान भी शायद माफ नही करेंगे लेकिन आप को ऐसे कोई मजदूर दिखे तो उनकी सहायता जरूर करियेगा।
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