Sunday, May 17, 2020

मजदूरों की हालत सुनकर आपके भी आँसू निकल जाएंगे, पार्टियां कर रही है सिर्फ राजनीति

16 मई 2020

🚩आज भारत देश अजीब मोड़ पर आ गया है। देशभर में लॉकडाउन लगा हुआ है जिससे गरीबों और मजदूरों का जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। आज देश में ऐसा माहौल है कि अगर ये कहे कि सरकार गरीब मजदूरों के लिए अच्छा कर रही है तो लोग बोलते हैं कि बीजेपी का भगत है। अगर ये बोले कि सरकार मजदूरों की सहायता नहीं कर रही तो बोलते हैं कि कांग्रेस का चमचा है। पर वास्तव में गरीब मजदूरों की बेबसी और लाचारी किसी को नहीं दिखाई दे रही। इन सभी चीजों से ऊपर उठकर निष्पक्ष रूप से सच्चाई उजागर करने की कोशिश की जा रही है ताकि सभी को सच्चाई से अवगत कराया जा सकें क्योंकि मजदूर भारत के निर्माण के कर्मयोगी है।

🚩भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है मतलब देश की जनता ही सरकार चुनती है। मगर उनके चुने हुए ये नेता स्वयं को जनता का सेवक नहीं अपितु राजा समझते हैं और जरूरत पड़ने पर अपने निजी फायदे के लिए इसी जनता की लाशों पर राजनीति करने से भी नहीं झिझकतें।

🚩24 तारीख की रात को एकाएक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कोरोना खतरे की वजह से 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की। दुकानें, ट्रेन, फ्लाइट, बस, ऑटो, टैक्सी सब कुछ बंद कर दिया गया। केवल परचून, सब्जी और दवाइयों की दुकानें ही खुली थी। लॉकडाउन का फैसला बिल्कुल उचित था पर देश की जनता को ज्यादा दिक्कत इसलिए हुई कि एकाएक लॉकडाउन कर दिया गया। सरकार ने पहले कोई लॉकडाउन का संकेत नहीं दिया। एकाएक लॉकडाउन से देश की जनता को बहुत समस्या हुई। सबसे अधिक समस्या हुई गरीब मजदूरों को।

🚩सब कुछ बंद होने से गरीब मजदूरों की नौकरी और मजदूरी छूट गई। यातायात के साधन बंद थे ही। अब इनको ये समस्या आई कि खाए कहाँ से, घर का किराया कैसे दें। एकाएक बाहर भी आटे, चावल के दाम बढ़ गए थे। ये तो भारत में होता ही है, कुछ लालची लोग मजबूरी का फायदा उठाने से नहीं चूकतें।

🚩एक महत्वपूर्ण बात ये थी कि मजदूर जिन ठेकेदारों, कम्पनियों या संस्थाओं में कार्य कर रहे थे उनके प्रमुख लोगों ने भी उनका ध्यान नही रखा वे चाहते तो वे खुद सुविधा उपलब्ध करवा सकते थे अथवा प्रशासन से मिलकर उनकी अच्छी व्यवस्था करवा सकते थे पर उन्होंने अपना स्वार्थ ही साधा उन्होंने सिर्फ काम कराके उनको रोड पर छोड़ दिया इसलिए अव्यवस्था हो रही हैं।

🚩हालांकि सरकार ने मजदूरों से अपील की कि आप जहां है, वहीं रहें। आपको भोजन पानी दिया जाएगा। सरकार की कोशिशें पर्याप्त नहीं थी। इसका सबूत था गरीब मजदूरों में डर जिसकी वजह से वे खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे थे। सरकार द्वारा जितनी भी कोशिशें हुई, वे कुछ लालची लोगों और नेताओं की घटिया राजनीति की वजह से जमीनी स्तर पर पूरी तरह गरीबों और मजदूरों तक नहीं पहुँची।

🚩मजबूर असहाय और लाचार थे। कोई रोजगार नहीं, जेब में फूटी कौड़ी नहीं, खाने को अनाज नहीं। साथ में छोटे-छोटे बच्चे और पत्नी। अब बताओ गरीब मजदूर क्या करें? जहाँ है वहाँ रुके तो भूखा मरे और घर जाए तो कैसे जाए। और हमारे देश के आदमखोर नेता जो इन्हीं गरीबों की वोट से नेता बने, अपने फायदे के लिए इनकी जिंदगी से खिलवाड़ करने से भी बाज़ नहीं आये।

🚩आपने देखा होगा दिल्ली में एकाएक हज़ारों मजदूर आनंद विहार बस स्टैंड पर इकट्ठा हो गए थे। कारण था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार गरीब मजदूरों के लिए बसें भेजेगी। इसी बात पर बहुत नीच स्तर की राजनीति की कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने। इन्होंने अफवाह फैला दी कि उत्तर प्रदेश के लिए बसें आ रही है। इसी कारण हजारों मजदूर आनंद विहार बस स्टैंड पर इकट्ठा हो गए। कोरोना महामारी के कारण जहां सोशल डिस्टेंसिंग अनिवार्य है, कुछ नेता सियासी फायदे के लिए इन गरीब मजदूरों की जान को जोखिम में डालने से भी नहीं घबराएं।

🚩उसी आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल रोज नई नई शर्ट पहनकर अलग अलग चैनलों पर विज्ञापन दे रहा है कि हमने ये किया, वो किया, इतने गरीबों को भोजन कराया। इस बहुरूपिऐं की इतना झूठ बोलते वक़्त जबान भी नहीं लड़खड़ाती।

🚩वहीं कांग्रेस पार्टी से सोनिया गांधी सरकार को कोसती है और सरकार में कमियां निकालती है। ये उसी कांग्रेस पार्टी की मुखिया है, जिसने 70 साल देश पर राज किया पर फिर भी गरीबी दूर नहीं कर पाई। और आज यहीं पार्टी बोलती हैं कि गरीब मजदूर दुखी है, सोच लीजिए कितने बड़े मक्कार है ये। फिर राहुल गांधी, जो पैंतीस को पिच्चतीस बोलता है, कुंभाराम को कुम्भकर्ण बोलता है, आलू को सोने में बदलने वाली मुर्खतापूर्ण बात करता है, वहीं राहुल गांधी प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सरकार के निर्णयों पर सवाल उठाता है। ये खुद को बहुत बड़ा इकोनॉमिस्ट दिखाता है पर इसको पता कुछ भी नहीं। इनको ना ही गरीबों, मजदूरों से मतलब है, ना ही देश से, इनको बस सत्ता से मतलब है और वे इसके लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं।

🚩गरीब मजदूरों के नाम पर राजनीति कर रहे नेताओं से मेरा एक ही प्रश्न है कि तुमने कितने भूखे गरीबों, मजदूरों को भोजन दिया? कितनों को अपने घर में शरण दी? कितनों को दवाई और दूसरी चीजें दी? कितने मजदूरों को यातायात के साधन उपलब्ध कराए? अगर नहीं तो तुम लोगों को कुछ बोलने का कोई हक नहीं इसलिए चुप रहो। अगर तुम्हारे साथ ऐसा होता, तुम्हारे बीवी बच्चे भूखे होतें, तुम्हें भूखे परिवार सहित सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलना पड़ता, तो तुम्हें पता चलता।

🚩हर जगह बस राजनीति ही हो रही है। कांग्रेस बीजेपी शासित और केंद्र सरकार के कदमों पर उंगली उठा रही है पर कांग्रेस शासित राज्यों में कुछ नहीं कर रही। वहां कुछ गलत होता है तो बोलती भी नहीं। वहीं बीजेपी को भी बस कांग्रेस शासित राज्यों में ही अव्यवस्था दिखती है। एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए षड़यंत्र भी हो रहे हैं, जान बूझकर अव्यवस्था भी की जा रही है ताकि उंगली उठाने का मौका मिले। और इस गिरी हुई राजनीति के बीच देश का गरीब मजदूर पीस रहा है।

🚩प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बार बार देश को सम्बोधित करके जनता को समझा रहे हैं, खुद को बचाकर रखने की अपील कर रहे हैं। सरकार के कुछ कदम तो बढ़िया है, पर ये पर्याप्त सिद्ध नहीं हुए। गरीबों, मजदूरों को मदद पहुँचाने में सरकार कामयाब नहीं रही।

🚩एक और कदम सरकार का अजीब लगा। भारत सरकार विदेशों से भारतीयों को बचा लाई, उनको लाने के लिए कई हवाईजहाज भेजे, उनसे कोई किराया भी नहीं लिया। चलो ये अच्छा किया पर वैसे किराया ले भी लेते तो भी क्या दिक्कत थी, ये लोग सक्षम थे। पर जो गरीब, मजदूर जिनके पास खाने को पैसे नहीं थे, उनके लिए मुफ्त की बसें क्यों नहीं भेजी गई? मुफ्त ट्रेनें क्यों नहीं चलाई गई? क्या गरीबों की जान की कोई कीमत नहीं?

🚩12 मई से केंद्र सरकार द्वारा "श्रमिक ट्रैन" चलाई गई जो बढ़िया निर्णय है। पर इन ट्रेनों में "राजधानी एक्सप्रेस" जितना किराया लिया जा रहा है, जो बिल्कुल गलत है। अब सरकार बताए कि गरीब मजदूर कहाँ से इतने पैसे लाये कि इतना किराया भर सके। अब तक तो उनके पैसे भी खत्म हो चुके होंगे। और मान लो कि एक सवारी का औसतन किराया 2000 रुपये है और एक मजदूर परिवार में बच्चों सहित 4-5 सवारी है। बताओ वो गरीब कहाँ से 8000-10000 रुपये लेकर आएगा?

🚩कुछ गरीब मजदूरों की व्यथा सुनी तो रोना आ गया। कितने ही मजदूर भूखे-प्यासें हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने घर पहुँचे पर इन नेताओं को उनकी मुसीबतों से कोई फर्क नहीं पड़ा। सुनिए कुछ मजदूरों की व्यथा 👇🏻

(1) औरंगाबाद, महाराष्ट्र में 08 मई को 16 मजदूरों को मालगाड़ी ने रौंद दिया। ये पैदल अपने घर जा रहे थे और थककर रेल की पटरी पर सो गए थे। इतने थक गए थे कि मालगाड़ी की आवाज़ तक नहीं सुनाई दी। ऐसे सोए कि फिर कभी नहीं उठे।

(2) उत्तर प्रदेश के औरैया जिले में 16 मई को सुबह भीषण हादसे में 24 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई। सभी श्रमिक एक ट्रक और ट्रोले में सवार थे। दिल्ली-कानपुर हाइवे पर हुए दर्दनाक हादसे में 36 श्रमिक गंभीर रूप से घायल हैं। इनमें से ज्यादातर मजदूर बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे।

(3) बिहार के पूर्णिया जिले की मुख्तारा सादातपुर में लखनऊ-मुजफ्फरपुर हाईवे के किनारे राेती दिखीं। जब पूछा तो बताया- ‘डेढ़ माह तक पानी बिस्किट पर जिंदगी कटी। मजदूरी करते थे। अचानक कर्फ्यू लग गया। क्या खाते? साथ काम करने वाले पैदल ही निकलने लगे, तो हम भी चल दिए। खुद किसी तरह भूखे रह लिए, बच्चे भूख से रोते-रोते बेसुध हो सो जाते, तो कलेजा फट जाता। कई दिनों तक एक रोटी के चार-चार टुकड़े कर पानी में भिगो कर बच्चों काे खिलाया।’ मुख्तारा की यह पीड़ा काेराेना के कारण मजदूरी पर आए संकट की कहानी है। गुड़गांव से लौटते वक्त लखनऊ के पास ट्रक ने  उसके पति काे टक्कर मार दी, जिससे उसका पैर टूट गया। कई बार गिड़गिड़ाने पर भी मदद नहीं मिली। आखिरकार एक गिट्टी लदे ट्रक वाले ने बैठा लिया।

(4) रायपुर में एक ह्रदय विदारक दृश्य देखा गया। जितने भी मजदूर एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं, उनके बच्चों के चेहरे मुरझाए हुए और आंखें सूखे हुए दिखे। और आखिर दर्द बयां भी किससे करें? एक बच्चा पत्थर पर बैठा था। मां की गोद की आदत तो जैसे छूट गई और अब तो पत्थर पर भी नींद आ जाती है। मजदूर महाराष्ट्र से निकलकर, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार, झारखंड जाने के लिए निकले हैं। मजदूर कहते हैं कि कि सब कुछ सहन हो जाता है, लेकिन बच्चों के चेहरे देख रोना आता है। कभी दूध मिल जाता है, तो कभी भूखे ही चलते रहना पड़ता है। बच्चों का सफर भी ऐसा कि कभी मां की गोद सफर का सहारा बनती है, तो कभी पिता की अंगुली और कंधे, और कभी-कभी पत्थर भी। और ये सफर अभी जारी है .......

(5) मुजफ्फरपुर में श्रवण कुमार नामक मजदूर दिखाई दिया। हरियाणा के गुड़गांव में सिलाई-कढ़ाई करने वाला श्रवण कंधे पर बैग टांगे पैदल ही 1000 किमी से ज्यादा के सफर पर है। पैदल चलते-चलते रास्ते में दिखने वाले ट्रक, ट्रोला और अन्य वाहनों से हाथ हिलाकर मदद मांगता, लेकिन सब अपने-अपने रास्ते निकल जाते और श्रवण वहीं छूट जाता। 7 दिन पैदल चलकर इतना थक चुका है कि पांव एक कदम आगे बढ़ने को तैयार नहीं। बढ़ने की कोशिश करता है तो पांव के छाले तड़पा देेते हैं। हाल पूछने पर फफक-फफक कर रो पड़ता है। बताता है- ‘6 हजार रुपए महीना मिलता था। काम-धंधा बंद हो गया तो मजदूर पिता ने गांव से कुछ पैसे भेजे, जो जल्द खत्म हो गए। मकान मालिक ने भी दो महीने का किराया लेकर जाने को कह दिया। बस, अब जल्द घर पहुंचना है।’

(6) भोपाल में देश का भविष्य नंगे पैर दिखाई दिया। 05 साल का राहुल पिता के साथ नंगे पैर 700 किमी के सफर पर चल रहा है। सुबह का समय है पर सड़क अभी से गर्म होने लगी है। साथ में माता-पिता भी हैं। ना गर्म सड़क से बचने का कोई उपाय और ना तेज धूप से बचने का जतन। उसे तो शायद यह भी पता नहीं कि वह किस मंजिल की तरफ और क्यों जा रहा है? लेकिन इतना जरूरी जानता है कि मिस्त्री का काम करने वाले पिता अविनाश दास सब कुछ समेटकर कहीं जा रहे हैं। अविनाश भोपाल के बंजारी इलाके में मिस्त्री का काम करते थे और जब कोई मदद नहीं मिली, तो पैदल ही छत्तीसगढ़ के अपने गांव मुंगेली के लिए निकल पड़े। अब ना तो पैसे बचे हैं और ना ही खाने-पीने का कोई सामान।

(7) लखनऊ के मलीहाबाद की रहने वाली गुड़िया ने रुंधे गले से सवाल किया कि अगर उन्हें खाना मिल ही जाता तो रात में चोरों की तरह क्यों भागते? मकान मालिक ने उनका सामान निकालकर बाहर फेंक दिया था। लेकिन अगर खाना मिल गया होता तो कहीं टेंट में ही रहकर जिंदगी गुजार लेते। जब खाना नहीं मिला तो वे अपनी किस्मत के भरोसे तीनों बच्चों के साथ निकल पड़ीं। वे आनंद विहार रेलवे स्टेशन की रेल पटरियों के सहारे लखनऊ के लिए निकल चुकी हैं। सड़क से जाते समय उन्हें पकड़े जाने का डर है। उन्हें अपनी मंजिल कब मिलेगी, अपने घर तक कैसे पहुंचेंगी, इसका कोई अंदाजा नहीं है। रास्ते में बच्चों की भूख कैसे मिटेगी, इस सवाल पर उनकी आंखें केवल आसमान की ओर उठ जाती हैं। उनके गले से कोई आवाज नहीं निकलती।

(8) यूपी के सुल्तानपुर के रहने वाले महेश बताते हैं कि लगभग 15 दिन हो गए, उनके पास कोई काम नहीं है। खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं है। दिल्ली सरकार के रैन बसेरों या स्कूलों में भी उन्हें खाने की कोई व्यवस्था होती नहीं दिखी तो पैदल ही घर जाने का निर्णय कर लिया। अब वे अपने चार अन्य साथियों के साथ सुल्तानपुर के लिए निकल चुके हैं। लगभग 650 किलोमीटर का दिल्ली से सुल्तानपुर का उनका सफर कैसे गुजरेगा, इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है।

🚩बेशक सरकार ने पैकेजों की घोषणा की पर गरीबों मजदूरों का कोई भला नहीं हुआ, इनके आंसू नहीं सूखे, इनकी भूख नहीं मिटी, इनका दर्द कम नहीं हुआ, इनके चेहरे से मायूसी और डर नहीं गया। फिर क्या फायदा ऐसे विकास का, फिर क्या फायदा उन सुविधाओं का देश के नागरिकों को ही नहीं मिली। सरकार से अपील है कि इन गरीब मजदूरों तक जमीनी स्तर तक मदद पहुँचाये, केवल आंकड़े ना गिनाए। और कुछ नेता जो इन गरीब मजदूरों के नाम पर सियासत कर रहे हैं, उनसे एक ही प्रश्न है कि तुमने इन गरीब मजदूरों के लिए क्या किया? अरे आदमखोरों कुछ तो शर्म करो। बंद करो राजनीति और हिम्मत है तो इनकी मदद करो नहीं तो चुप रहो।

🚩देश के सक्षम नागरिकों से अपील है कि इन गरीब मजदूरों की मदद जरूर करें। अगर ये कहीं दिखे तो इनको खाना पानी दे और हो सके तो रात में रुकने के लिए शरण भी दे। ध्यान रहे मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।

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