Sunday, May 31, 2020

देश का नाम इंडिया बदलकर भारत अथवा हिंदुस्तान करना क्यो जरूरी है?

31 मई 2020

🚩सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है कि इंडिया नाम रखना अंग्रेजो की गुलामी का प्रतीक है जबकि भारत अथवा हिंदुस्तान नाम रखना जरूरी है क्योंकि उससे राष्ट्रभक्ति जागृत, होगी इस पर सुनवाई 2 जून को है।

🚩नाम बदलना क्यों जरूरी हैं?

🚩कम्युनिज्म के पतन के बाद रूस, यूक्रेन, मध्य एशिया और संपूर्ण पूर्वी यूरोप में असंख्य शहरों, भवनों, सड़कों के नाम बदले गए। रूस में लेनिनग्राड को पुनः सेंट पीटर्सबर्ग, स्तालिनग्राड को वोल्गोग्राद आदि किया गया। पड़ोस में सीलोन ने अपना नाम श्रीलंका तथा बर्मा ने म्यानमार कर लिया। स्वयं ग्रेट ब्रिटेन को अपनी आधिकारिक संज्ञा बदलकर यूनाइटेड किंगडम करना पड़ा। इन नाम-परिवर्तनों के पीछे गहरी सांस्कृतिक, राजनीतिक भावनाएं रही हैं।

🚩अतः यह दुखद है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यहाँ अनेक प्रांतों और शहरों के नाम तो बदले, किंतु देश का नाम यथावत विकृत बना हुआ है। समय आ गया है कि जिन लोगों ने ‘त्रिवेन्द्रम’ को तिरुअनंतपुरम्, ‘मद्रास’ को तमिलनाडु, ‘बोंबे’ को मुंबई, ‘कैलकटा’ को कोलकाता या ‘बैंगलोर’ को बंगलूरू, ‘उड़ीसा’ को ओडिसा तथा ‘वेस्ट बंगाल’ को पश्चिमबंग आदि पुनर्नामांकित करना जरूरी समझा – उन सब को मिल-जुल कर अब ‘इंडिया’ शब्द को विस्थापित कर भारत अथवा हिंदुस्तान कर देना चाहिए। क्योंकि यह वह शब्द है जो हमें पददलित करने और दास बनाने वाली संस्था ने हम पर थोपा था।

🚩यह केवल भावना की बात नहीं। किसी देश, प्रदेश के नामकरण का गंभीर निहितार्थ होता है। दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण शिक्षाप्रद है। वहाँ विगत दस वर्ष में 916 स्थानों के नाम बदले जा चुके हैं! इन में शहर ही नहीं, नदियों, पहाड़ों, बाँधों और हवाई अड्डों तक के नाम हैं। आगे भी कई नाम बदलने का प्रस्ताव है। यह इस सिद्धांत के आधार पर किया गया कि जो नाम जनमानस को चोट पहुँचाते हैं, उन्हें बदला ही जाना चाहिए। वहाँ यह विषय इतना गंभीर है कि ‘दक्षिण अफ्रीका ज्योग्राफीकल नेम काउंसिल’ नामक एक सरकारी आयोग इस पर सार्वजनिक सुनवाई कर रहा है।

🚩अतएव, हमारे देश का नाम सुधारना भी एक गंभीर मह्त्व का प्रश्न है। नामकरण बौद्धिक-सांस्कृतिक प्रभुत्व के प्रतीक और उपकरण होते हैं। पिछले आठ सौ वर्षों से यहाँ विदेशी आक्रांताओं ने हमारे सांस्कृतिक, धार्मिक और शैक्षिक केंद्रों को नष्ट कर उसे नया रूप और नाम देने का अनवरत प्रयास किया। अंग्रेज शासकों ने भी यहाँ अपने शासकों, जनरलों के नाम पर असंख्य स्थानों के नाम रखें। शिक्षा में वही काम लॉर्ड मैकॉले ने खुली घोषणा करके किया, कि वे भारतवासियों की मानसिकता ही बदल कर उन्हें स्वैच्छिक ब्रिटिश नौकर बनाना चाहते हैं, जो केवल शरीर से भारतीय रहेंगे।

🚩वस्तुतः नाम, शब्द और विचार बदलने का महत्व केवल अंग्रेज ही नहीं समझते थे। जब 1940 में यहाँ मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के अलग देश की माँग की और अंततः उसे लिया तो उसका नाम पाकिस्तान रखा। वे चाहते तो नए देश का नाम ‘वेस्ट इंडिया’ या ‘मगरिबी हिन्दुस्तान’ रख सकते थे – जैसा जर्मनी, कोरिया आदि के विभाजनों में हुआ था, यानी पूर्वी जर्मनी, पश्चिमी जर्मनी तथा उत्तरी कोरिया, दक्षिणी कोरिया। पर मुस्लिम लीग ने एकदम अलग, मजहबी नाम रखा। इस के पीछे भी एक पहचान छोड़ने और दूसरी अपनाने की चाहत थी। यहाँ तक कि अपने को मुगलों का उत्तराधिकारी मानते हुए भी मुस्लिम नेताओं ने मुगलिया शब्द ‘हिन्दुस्तान’ भी नहीं अपनाया। क्यों?

🚩क्योंकि नाम और शब्द कोई निर्जीव उपकरण नहीं होते। वह किसी भाषा व संस्कृति की थाती होते हैं। जैसा निर्मल वर्मा ने लिखा है, कई शब्द अपने आप में संग्रहालय होते हैं जिन में किसी समाज की सहस्त्रों वर्ष पुरानी पंरपरा, स्मृति, रीति और ज्ञान संघनित रहता है। इसीलिए जब कोई किसी भाषा को छोड़ता है तो जाने-अनजाने उसके पीछे की पूरी चेतना, परंपरा भी छोड़ता है। संभवतः इसीलिए अभी हमारे जो राष्ट्रवादी नेता, लेखक या पत्रकार पूर्णतः अंग्रेजी शिक्षा पर आधारित हैं, और जिन्होंने संस्कृत या भारतीय शास्त्रों का मूल रूप में अध्ययन नहीं किया है, वे प्रायः हिन्दू जनता की चेतना से तारतम्य नहीं रख पाते। कई बिंदुओं पर उनके विचार सेक्यूलरवादियों या हिन्दू-विरोधी ‘आधुनिकों’ से मिलने लगते हैं। क्योंकि उन बिन्दुओं पर उनकी शिक्षा विदेशी भाषा तथा विदेशी अवधारणाओं के आधार पर हुई है। इसीलिए अपनी पूरी सदभावना के बावजूद वे चिंतन में अ-भारतीय, अ-हिन्दू हो जाते हैं।

🚩वस्तुतः, सन् 1947 में हमसे जो सबसे बड़ी भूलें हुईं उन में से एक यह भी थी कि स्वतंत्र होने के बाद भी देश का नाम ‘इंडिया’ रहने दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया के लब्ध-प्रतिष्ठित विद्वान संपादक गिरिलाल जैन ने लिखा था कि स्वतंत्र भारत में इंडिया नामक इस “एक शब्द ने भारी तबाही की”। यह बात उन्होंने इस्लामी समस्या के संदर्भ में लिखी थी। यदि देश का नाम भारत होता, तो भारतीयता से जुड़ने के लिए यहाँ किसी से अनुरोध नहीं करना पड़ता! गिरिलाल जी के अनुसार, इंडिया ने पहले इंडियन और हिन्दू को अलग कर दिया। उससे भी बुरा यह कि उसने ‘इंडियन’ को हिन्दू से बड़ा बना दिया। यदि यह न हुआ होता तो आज सेक्यूलरिज्म, डाइवर्सिटी, और मल्टी-कल्टी का शब्द-जाल व फंदा रचने वालों का काम इतना सरल न रहा होता।

🚩यदि देश का नाम भारत रहता तो इस देश के मुसलमान स्वयं को भारतीय मुसलमान कहते। इन्हें अरब में अभी भी ‘हिन्दवी’ मुसलमान’ ही कहा जाता है। सदियों से विदेशी लोग भारतवासियों को ‘हिन्दू’ ही कहते रहे और आज भी कहते हैं। यह पूरी दुनिया में हमारी पहचान है, जिस से मुसलमान भी जुड़े थे। क्योंकि वे सब हिन्दुओं से धर्मांतरित हुए लोग ही हैं (यह महात्मा गाँधी ही नही, फारुख अब्दुल्ला भी कहते हैं)। 

🚩इस प्रकार, विदेशियों द्वारा दिए गए नामों को त्यागना आवश्यक है। इस में अपनी पहचान के महत्व और गौरव की भावना है। ‘इंडिया’ को बदलकर भारत करने में किसी भाषा, क्षेत्र, जाति या संप्रदाय को आपत्ति नहीं हो सकती। भारत शब्द इस देश की सभी भाषाओं में प्रयुक्त होता रहा है। बल्कि जिस कारण मद्रास, बोम्बे, कैलकटा, त्रिवेंद्रम आदि को बदला गया, वह कारण देश का नाम बदलने के लिए और भी उपयुक्त है। इंडिया शब्द भारत पर ब्रिटिश शासन का सीधा ध्यान दिलाता है। आधिकारिक नाम में ‘इंडिया’ का पहला प्रयोग ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ में किया गया था जिसने हमें गुलाम बना कर दुर्गति की। जब वह व्यापार करने इस देश में आई थी तो यह देश स्वयं को भारतवर्ष या हिन्दुस्तान कहता था। क्या हम अपना नाम भी अपना नहीं रखा सकते?

🚩वस्तुतः पिछले वर्ष गोवा के कांग्रेस सांसद श्री शांताराम नाईक ने इस विषय में संविधान संशोधन हेतु राज्य सभा में एक निजी विधेयक प्रस्तुत किया भी था। इस में उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना तथा अनुच्छेद एक में इंडिया शब्द को हटाकर भारत कर लिया जाए। क्योंकि भारत अधिक व्यापक और अर्थवान शब्द है, जबकि इंडिया मात्र एक भौगोलिक उक्ति। श्री नाईक को हार्दिक धन्यवाद कि वह एक बहुत बड़े दोष को पहचानकर उसे दूर करने के लिए आगे बढ़े। पर जागरूक और देशभक्त भारतवासियों द्वारा इसके पक्ष में किसी अभियान का अभाव रहा है।

🚩देश का नाम भारत करने के प्रयास में ऐसे बौद्धिक मौन-मुखर विरोध करेंगे। क्योंकि उन्हें ‘भारतीयता’ संबंधी भाव से वितृष्णा है।समस्या यह है कि जिस प्रकार कोलकाता, चेन्नई और मुंबई के लिए एक स्थानीय जनता की भावना सशक्त थी, उस प्रकार भारत के लिए नहीं दिखती। इसलिए नहीं कि इसकी चाह रखने वाले कम हैं। वरन ठीक इसीलिए कि भारत की भावना स्थानीयता की नहीं, बल्कि राष्ट्रीयता की भावना है। अतः देशभक्ति से किसी न किसी कारण दूर रहने वाले, अथवा किसी न किसी प्रकार के ‘अंतर्राष्ट्रीयतावाद’ या ‘ग्लोबल’ भाव से जुड़ाव रखने वाले राजनीतिक और बौद्धिक इसके प्रति उदासीन हैं।

🚩इंडिया शब्द को बदल कर भारत करना राष्ट्रीय प्रश्न है, इसीलिए राष्ट्रीय भाव को कमतर मानने वाले हर तरह के गुट, गिरोह और विचारधाराएं इसके प्रति दुराव रखते हैं। वे विरोध करने के लिए हर तरह की संकीर्ण भावना उभारेंगे। उत्तर भारत या कथित हिन्दी क्षेत्र की मंद सांस्कृतिक-राजनीतिक चेतना उनके लिए सुविधा करती है। इस क्षेत्र में वैचारिक दासता, आपसी कलह, अविश्वास, भेद और क्षुद्र स्वार्थ अधिक है। इन्हीं पर विदेशी, हानिकारक विचारों का भी अधिक प्रभाव है। वे बाहरी हमलावरों, पराए आक्रामक विचारों, आदि के सामने झुक जाने, उनके दीन अनुकरण को ही ‘समन्वय’, ‘संगम’, ‘अनेकता में एकता’ आदि बताते रहे हैं। यह दासता भरी आत्मप्रवंचना है, जो विदेशियों से हार जाने के बाद “आत्मसमर्पण को सामंजस्य” बताती रही है। इसी बात की डॉ. राममनोहर लोहिया ने सर्वाधिक आलोचना की थी।

🚩अतः उत्तर भारत से सहयोग की आशा कम ही है। इनमें अपने वास्तविक अवलंब को पहचानने और टिकने के बदले हर तरह के विदेशी विचारों, नकलों, दुराशाओं, शत्रुओं की सदाशयता पर आस लगाने की प्रवृत्ति हैं। इसीलिए उनमें भारत नाम की कोई ललक आज तक नहीं जगी। यह संयोग नहीं कि देश का नाम पुनर्स्थापित करने का प्रस्ताव कोंकण-महाराष्ट्र क्षेत्र से आया। जब इसे बंगाल, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से प्रबल समर्थन मिलेगा तभी यहाँ के अंग्रेजी-परस्त भारत नाम स्वीकार करेंगे। अन्यथा उन की सहज प्रवृत्ति इस विषय को पूरी तरह दबाने की रही है। देशभक्तों को इस पर विचार करना चाहिए। लेखक : डॉ. शंकर शरण

🚩अंग्रेजों ने हमें 200 साल तक गुलाम रखा, देश की संपत्ति लूटकर ले गए, देशवासियों के साथ अनगिनत अत्याचार किये फिर भी अभी तक उनका नाम रखें और आज 72 साल हो गए फिर भी नाम नही बदला गया बड़ा आश्चर्य है। सभी अपने देश को अपने नाम से ही पुकारते है हमारे देश मे दो नाम क्यो है? जो काम सरकार को करना चाहिए था वे आज एक नागरिक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालकर मांग की है। सरकार को भी जनता की मांग को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में बताना चाहिए कि देश का नाम शीघ्र बदल जाये इंडिया शब्द हटाकर भारत अथवा हिंदुस्तान कर देना चाहिए।

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Saturday, May 30, 2020

क्या पंचगव्य से कोरोना खत्म हो सकता है? पंचगव्य से क्या-क्या फायदे होते हैं?

30 मई 2020

🚩विश्व में कोरोना वायरस की महामारी चल रही है उसके रोकथाम के लिए अभी तक कोई दवाई नही बन पाई है, लेकिन दावा किया जा रहा है कि पंचगव्य से कोरोना वायरस खत्म किया जा सकता है।

🚩कोरोना के इलाज पर पंचगव्य से ट्रायल चालू हो गया है जो सबसे पहले राजकोट, गुजरात के सिविल अस्पताल में होगा और 15 दिन तक चलेगा।

🚩बता दे कि गाय को पशु नहीं माना जाता है गाय को माता का दर्जा दिया है क्योंकि गाय माता में 33 करोड़ देवता बसते हैं, गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गौझरण से असाध्य रोग भी मिट जाते हैं, यह कुछ वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध किया है।

🚩आपको बता दे कि गुजरात जूनागढ़ कृषि यूनिवर्सिटी के बायोटेक्नोलॉजी विभाग द्वारा अलग-अलग शोध किए जाते हैं। बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सह संशोधक वैज्ञानिक डॉ. रूकमसिंह तोमर, डॉ. श्रद्धाबेन भट्‌ट, डॉ. कविताबेन जोशी ने गोमूत्र पर महत्वपूर्ण शोध किया है। शोध में गोमूत्र के अर्क में चार प्रकार के कैंसर के कोश को नष्ट करने की क्षमता पाई गई है।

🚩पंचगव्य किससे बनता है?

🚩पंचगव्य स्वस्थ देशी गाय के दूध, दही, घी, गौमूत्र, गोबर से बनता है।

🚩पंचगव्य से क्या लाभ होता है?

🚩पंचगव्य के नियमित सेवन से मानसिक व्याधियाँ पूर्णतः नष्ट हो जाती हैं। विषैली औषधियों के सेवन से तथा लम्बी बीमारी से शरीर में संचित हुए विष का प्रभाव भी निश्चितरूप से नष्ट हो जाता है। गोमाता से प्राप्त होनेवाला, अल्प प्रयास और अल्प खर्च में मानव-जीवन को सुरक्षित बनानेवाला यह अद्भुत रसायन है। पंचगव्य द्वारा शरीर की रोगनिरोधक क्षमता को बढ़ाकर रोगों को दूर किया जाता है। आयुर्वेद में पंचगव्य से कैंसर जैसे भयानक रोग तक का निदान किया जाता है। दिल्ली के पश्चिमी पंजाबी बाग स्थित एक चेरिटेबल अस्पताल में पंचगव्य आधारित आयुर्वेदिक कैंसर चिकित्सा के जरिये सैंकड़ों मरीजों को ठीक करने का दावा किया जाता है। कोरोना वायरस भी रोगप्रतिकारक शक्ति कम होने के कारण ही होता है इसलिए पंचगव्य पान करने से रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी तो कोरोना जैसा वायरस हमला नही कर सकता।

🚩आपको बता दे कि देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए वरदानरूप हैं। दूध स्मरणशक्तिवर्धक, स्फूर्तिवर्धक, विटामिन्स और रोगप्रतिकारक शक्ति से भरपूर है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं जो क्षुधा को बढ़ाने में सहायता करते हैं। घी ओज-तेज प्रदान करता है। इसी प्रकार गोमूत्र कफ व वायु के रोग, पेट व यकृत (लीवर) आदि के रोग, जोड़ों के दर्द, गठिया, चर्मरोग आदि सभी रोगों के लिए एक उत्तम औषधि है। गाय के गोबर में कृमिनाशक शक्ति है। जिस घर में गोबर का लेपन होता है वहाँ हानिकारक जीवाणु प्रवेश नहीं कर सकते। पंचामृत व पंचगव्य का प्रयोग करके असाध्य रोगों से बचा जा सकता है। ये हमारे पाप-ताप भी दूर करते हैं। गाय से बहुमूल्य गोरोचन की प्राप्ति होती है।

🚩यहाँ तो आपको कम शब्दों में गाय के दूध, घी, दही, गौमूत्र और गोबर की महिमा बताई गई है बाकी इन एक एक चीज का वर्णन करेंगे तो एक एक चीज पर बड़े-बड़े ग्रँथ लिखे जा सकते हैं गौ माता की महिमा आज हम भूल गए और उसका पालन करना छोड़ दिया और गौहत्या करके उसका मांस खाने लगे, गौ आधारित खेती करना छोड़ दिया तभी से देश मे अनेको भयंकर रोग फैलने लगे और अरबो-खबरों रुपये की दवाइयां आज देशवासी खा रहे है हॉस्पिटल में भीड़ लगी रहती हैं अगर अभी भी हम गौमाता की महिमा समझकर उसका पालन करे और उसके दूध-दही-धी आदि का उपयोग करे तो जीवन स्वस्थ्य और सुखी रह सकता हैं। सिर्फ स्वास्थ्य लाभ ही नही बल्कि गाय के दूध-घी-गोबर-गौमूत्र द्वारा आर्थिक लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं।

🚩गौ-सेवा से धन-सम्‍पत्ति, आरोग्‍य आदि मनुष्‍य-जीवन को सुखकर बनानेवाले सम्‍पूर्ण साधन सहज ही प्राप्‍त हो जाते हैं।

🚩केंद्र और राज्य सरकार क सभी कत्लखानों को बंद करके उसमें गौशालाओं खोल देनी चाहिए जिससे देश की आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी एवं लोगो का स्वास्थ्य लाभ होगा और देश मे सुख-शांति बढ़ेगी।

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Friday, May 29, 2020

केक और मोमबत्ती से जन्मदिन मनाते हो तो हो जाइये सावधान: अमेरिकी वैज्ञानिक

29 मई 2020

🚩भारतीय संस्कृति में जन्मदिन वैदिक तरीके से मनाते थे, मोमबत्ती फूंकना और केक काटना था ही नही। पश्चिमी सभ्यता से ये परम्परा आई है और विदेशी कम्पनियों ने अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए केक का प्रचार किया जिसके कारण हर कोई जन्मदिन पर केक काटता है और मोमबत्ती पर फूक मारकर ताली बजाते है पर इस पर वैज्ञानिकों ने चौकाने वाला खुलासा किया है और अभी कोरोना महामारी में यह परंपरा बंद नही की तो ये मौत का कारण भी बन सकती है।

🚩आपको बता दे कि कुछ समय पूर्व वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि, केक पर लगी मोमबत्तियों को फूंक मारकर बुझाने से केक बैक्टीरिया से भर जाता है। अमेरिका की क्लेमसन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा की जन्मदिन पर केक पर लगी मोमबत्तियाँ बुझाते समय केक पर थूक फैल जाता है जिसके कारण केक पर 1400% बैक्टीरिया बढ जाते हैं।

🚩शोधकर्ताओं के अनुसार, इंसान की सांस में मौजूद बायोएरोसोल बैक्टीरिया का स्त्रोत है जो फूंक मारने पर केक की सतह पर फैल जाता है। इंसानों का मुहं बैक्टीरिया से भरा होता है। (स्त्रोत : हिन्दू जन जागृति)

🚩इस कोरोना महामारी में और आगे भी इस परंपरा को बंद कर देना चाहिए नही तो इससे बैक्टीरिया का संक्रमण बढ़ने की संभावना बढ़ जाएगी और इससे मृत्य दर भी बढ़ सकती है वैसे ये हमारी परंपरा रही ही नही है तो बंद ही कर देना चाहिए।

🚩जन्मदिवस पर क्या करें?

🚩जन्मदिवस के अवसर पर महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हुए घी, दूध, शहद और दूर्वा घास के मिश्रण की आहुतियाँ डालते हुए हवन करना चाहिए। ऐसा करने से आपके जीवन में कितने भी दुःख, कठिनाइयाँ, मुसीबतें हों या आप ग्रहबाधा से पीड़ित हों, उन सभी का प्रभाव शांत हो जायेगा और आपके जीवन में नया उत्साह आने लगेगा।

🚩मार्कण्डेय ऋषि का नित्य सुमिरन करने वाला और संयम-सदाचार का पालन करने वाला व्यक्ति सौ वर्ष जी सकता है – ऐसा शास्त्रों में लिखा है। कोई एक तोला (11.5) ग्राम गोमूत्र लेकर उसमें देखते हुए सौ बार 'मार्कण्डेय' नाम का सुमिरन करके उसे पी ले तो उसे बुखार नहीं आता, उसकी बुद्धि तेज हो जाती है और शरीर में स्फूर्ति आती है।

🚩अपने जन्मदिवस पर मार्कण्डेय तथा अन्य चिरंजीवी ऋषियों का सुमिरन, प्रार्थना करके एक पात्र में दो पल (93 ग्राम) दूध तथा थोड़ा-सा तिल व गुड़ मिलाकर पीये तो व्यक्ति दीर्घजीवी होता है। प्रार्थना करने का मंत्र हैः
ॐ मार्कण्डेय महाभाग सप्तकरूपान्तजीवन।
चिरंजीवी यथा त्वं भो भविष्यामि तथा मुने।।
रूपवान् वित्तवांश्चैव श्रिया युक्तश्च सर्वदा।
आयुरारोग्यसिद्धयर्थ प्रसीद भगवन् मुने।।
चिरंजीवी यथा त्वं भो मुनीनां प्रवरो द्विजः।
कुरूष्व मुनिशार्दुल तथा मां चिरजीविनम्।।
नववर्षायुतं प्राप्य महता तपसा पुरा।
सप्तैकस्य कृतं येन आयु में सम्प्रयच्छतु।।

🚩अथवा तो नींद खुलने पर अश्वत्थामा, राजा बलि, वेदव्यासजी, हनुमानजी, विभीषण, परशुरामजी, कृपाचार्यजी, मार्कण्डेयजी – इन चिरंजीवियों का सुमिरन करे तो वह निरोग रहता है।

🚩जन्मदिवस के दिन बच्चा ‘केक’ पर लगी मोमबत्तियाँ जलाकर फिर फूँक मारकर बुझा देता है । जरा सोचिये, हम कैसी उलटी गंगा बहा रहे हैं ! जहाँ दीये जलाने चाहिए वहाँ बुझा रहे हैं ! जहाँ शुद्ध चीज खानी चाहिए वहाँ फूँक मारकर उडे हुए थूक से जूठे, जीवाणुओं से दूषित हुए ‘केक' को बडे चाव से खा-खिला रहे हैं ! हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों को उनके जन्मदिवस पर भारतीय संस्कार व पद्धति के अनुसार ही कार्य करना सिखायें ताकि इन मासूमों को हम अंग्रेज न बनाकर सम्माननीय भारतीय नागरिक बनायें। यह शरीर, जिसका जन्मदिवस मनाना है, पंचभूतों से बना है जिनके अलग-अलग रंग हैं । पृथ्वी का पीला, जल का सफेद, अग्नि का लाल, वायु का हरा व आकाश का नीला। थोडे-से चावल हल्दी, कुमकुम आदि उपरोक्त पाँच रंग के द्रव्यों से रंग लें । फिर उनसे स्वस्तिक बनायें और जितने वर्ष पूरे हुए हों, मान लो 4 उतने छोटे दीये स्वस्तिक पर रख दें तथा 5 वें वर्ष की शुरुआत के प्रतीक रूप में एक बडा दीया स्वस्तिक के मध्य में रखें । फिर घर के सदस्यों से सब दीये जलवायें तथा बडा दीया कुटुम्ब के श्रेष्ठ, ऊँची समझवाले, भक्तिभाववाले व्यक्ति से जलवायें । इसके बाद जिसका जन्मदिवस है, उसे सभी उपस्थित लोग शुभकामनाएँ दें । फिर आरती व प्रार्थना करें । 

🚩अभिभावक एवं बच्चे ध्यान दें -  पार्टियों में फालतू का खर्च करने के बजाय बच्चों के हाथों से गरीबों में, अनाथालयों में भोजन, वस्त्र इत्यादि का वितरण करवाकर अपने धन को सत्कर्म में लगाने के सुसंस्कार डालें । लोगों से चीज-वस्तुएँ (गिफ्ट्स) लेने के बजाय अपने बच्चे को गरीबों को दान करना सिखायें ताकि उसमें लेने की नहीं अपितु देने की सुवृत्ति विकसित हो ।

🚩जन्मदिवस पर बच्चे बडे-बुजुर्गों को प्रणाम करें, उनका आशीर्वाद पायें । बच्चे संकल्प करें कि आनेवाले वर्षों में पढाई, साधना, सत्कर्म आदि में सच्चाई और ईमानदारी से आगे बढकर अपने माता-पिता व देश का गौरव बढायेंगे । (स्त्रोत्र : संत आसारामजी बापू के प्रवचन से )

🚩अभी समय आ गया है कि हम हिन्दुआें पाश्चिमात्य संस्कृति का दुष्परिणाम ध्यान में लेकर हिन्दु संस्कृति के अनुसार जन्मदिन मनाए !

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