Thursday, January 3, 2019

जानिये कुंभ की उत्पत्ति कैसे हुई और कहाँ-कहां कुंभ मेला लगता है ?

3 जनवरी  2019


🚩कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं । इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है । 2013 का कुम्भ प्रयाग में हुआ था । 2019 में प्रयाग में अर्धकुंभ मेले का आयोजन होगा ।

🚩खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं । मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है । यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है ।
Know how Kumbh originated and where
 and where does Kumbh Mela occur?

🚩प्रयागराज में कुंभ पर्व का लाभ उठाने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु एकत्रित हो रहे हैं । इस निमित्त से कुंभ मेले की महिमा का वर्णन करनेवाले सूत्र पाठकों के लिए यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ।

🚩कुंभ पर्व का अर्थ

प्रत्येक 12 वर्ष के उपरांत प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक में आनेवाला पुण्ययोग ।

🚩कुंभपर्व की उत्पत्ति की कथा:-

अमृतकुंभ प्राप्ति हेतु देवों एवं दानवों ने (राक्षसोंने) एकत्र होकर क्षीरसागरका मंथन करने का निश्चय किया । समुद्रमंथन हेतु मेरु (मंदार) पर्वत को बिलोने के लिए सर्पराज वासुकी को रस्सी बनने की विनती की गई । वासुकी नाग ने रस्सी बनकर मेरु पर्वत को लपेटा । उसके मुख की ओर दानव एवं पूंछ की ओर देवता थे । इस प्रकार समुद्रमंथन किया गया । इस समय समुद्रमंथनसे क्रमशः हलाहल विष, कामधेनु (गाय), उच्चैःश्रवा (श्वेत घोडा), ऐरावत (चार दांतवाला हाथी), कौस्तुभमणि, पारिजात कल्पवृक्ष, रंभा आदि देवांगना (अप्सरा), श्री लक्ष्मीदेवी (श्रीविष्णुपत्नी), सुरा (मद्य), सोम (चंद्र), हरिधनु (धनुष), शंख, धन्वंतरि (देवताओंके वैद्य) एवं अमृतकलश (कुंभ) आदि चौदह रत्न बाहर आए । धन्वंतरि देवता हाथ में अमृतकुंभ लेकर जिस क्षण समुद्रसे बाहर आए, उसी क्षण देवताओं के मनमें आया कि दानव अमृत पीकर अमर हो गए तो वे उत्पात मचाएंगे । इसलिए उन्होंने इंद्रपुत्र जयंतको संकेत दिया तथा वे उसी समय धन्वंतरि के हाथोंसे वह अमृतकुंभ लेकर स्वर्गकी दिशा में चले गए । इस अमृतकुंभ को प्राप्त करनेके लिए देव-दानवोंमें 12 दिन एवं 12 रातोंतक युद्ध हुआ । इस युद्ध में 12 बार अमृतकुंभ नीचे गिरा । इस समय सूर्यदेवने अमृतकलश की रक्षा की एवं चंद्र ने कलश का अमृत न उड़े इस हेतु सावधानी रखी एवं गुरु ने राक्षसों का प्रतिकार कर कलश की रक्षा की । उस समय जिन 12 स्थानों पर अमृतकुंभ से बूंदें गिरीं, उन स्थानों पर उपरोक्त ग्रहों के विशिष्ट योग से कुंभपर्व मनाया जाता है । इन 12 स्थानोंमें से भूलोक में प्रयाग (इलाहाबाद), हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक समाविष्ट हैं ।


🚩3. कुंभपर्वका विविध धर्मग्रंथोंमें वर्णित माहात्म्य:-

3 अ. ऋग्वेद

        ऋग्वेदके खिलसूक्तमें कहा गया है –

🚩सितासिते सरिते यत्र सङ्गते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति ।

ये वै तन्वं विसृजन्ति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।

– ऋग्वेद, खिलसूक्त

अर्थ : जहां गंगा-यमुना दोनों नदियां एक होती हैं, वहां स्नान करनेवालों को स्वर्ग मिलता है एवं जो धीर पुरुष इस संगम में तनुत्याग करते हैं, उन्हें मोक्ष-प्राप्ति होती है ।

🚩3 आ. पद्मपुराण

प्रयागराज तीर्थक्षेत्र के विषय में पद्मपुराण में कहा गया है –

ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी ।

तीर्थानामुत्तमं तीर्थं प्रयागाख्यमनुत्तमम् ।।

अर्थ : जिस प्रकार ग्रहोंमें सूर्य एवं नक्षत्रोंमें चंद्रमा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार सर्व तीर्थोंमें प्रयागराज सर्वोत्तम हैं ।

🚩3 इ. कूर्मपुराण

कूर्मपुराण में कहा गया है कि प्रयाग तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है ।

🚩3 ई. महाभारत

प्रयागः सर्वतीर्थेभ्यः प्रभवत्यधिकं विभो ।।

श्रवणात् तस्य तीर्थस्य नामसंकीर्तनादपि ।।

मृत्तिकालम्भनाद्वापि नरः पापात् प्रमुच्यते।।

– महाभारत, पर्व ३, अध्याय ८३, श्लोक ७४, ७५

अर्थ : हे राजन्, प्रयाग सर्व तीर्थों में श्रेष्ठ है । उसका माहात्म्य श्रवण करनेसे, नामसंकीर्तन करनेसे अथवा वहां की मिट्टी का शरीर पर लेप करने से मनुष्य पापमुक्त होता है ।

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – कुंभमेलेकी महिमा एवं पवित्रताकी रक्षा )

🚩इतिहासकार एस बी रॉय ने अनुष्ठानिक नदी स्नान को 10,000 ईसापूर्व (ईपू) स्वसिद्ध किया । जब इतिहासकार मानते है कि यीशु से 10, 000 साल पहले से कुंभ है तो सनातन संस्कृति तो जब से सृष्टि उत्पन्न हुई है तबसे है, फिर भी कुछ मुर्ख लोगों द्वारा 2018 साल पुराना धर्म को लेकर नया साल मनाने लगे ।

🚩ज्योतिषीय महत्व:-

ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेषराशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है । ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी स्थान पर गंगा जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है । यही कारण है ‍कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं । आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है । हालाँकि सभी हिंदू त्यौहार समान श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाए जाते हैं, पर यहाँ अर्ध कुंभ तथा कुंभ मेले के लिए आने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है ।

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