Monday, September 21, 2020

खालिस्तान की मांग करने वालें सिखों की जान लीजिए सच्चाई क्या है?

 

21 सितंबर 2020


पिछले कुछ समय से खालिस्तान मुद्दे पर बहस दोबारा ज़ोर पकड़ चुकी है। सोशल मीडिया पर अक्सर ऐसी वीडियो और तस्वीरें सामने आती हैं, जिसमें खालिस्तानी समर्थक नज़र आ जाते हैं। खालिस्तान का पाकिस्तान से संबंध भी छुपा नहीं रह गया है। इसका सबसे पुख्ता सबूत है “Khalistan: A Project of Pakistan” (खालिस्तान: पाकिस्तान का एक प्रोजेक्ट) नाम की रिपोर्ट। मैकडोनाल्ड लौरियर इंस्टिट्यूट (MLI) द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में पाकिस्तान और खालिस्तानी समर्थकों के बीच संबंधों पर विस्तार से चर्चा की गई है। इस रिपोर्ट पर चर्चा करने के लिए 18 सितंबर 2020 को एक वेबिनार आयोजित कराया गया था। इसका शीर्षक था – “Khalistani Terrorism & Canada” यानी कनाडा में बढ़ते खालिस्तानी आतंकवाद पर चर्चा।




इसका आयोजन नई दिल्ली की थिंक टैंक लॉ एंड सोसाइटी अलायन्स ने कराया था। वेबिनार में शामिल होने वाले मुख्य 4 लोगों ने सिलसिलेवार तरीके से इस मुद्दे पर अपना विचार रखा। इसमें शामिल होने वाले 4 लोग टेरी मिलेव्सकी, रमी रेंजर, सुखी चहल और मेजर गौरव आर्य थे। सबसे पहले MIL की रिपोर्ट के लेखक टेरी मिलेव्सकी ने कहा:

“मैंने 15 अगस्त को ऐसे कई इवेंट देखें, जिसमें खालिस्तान का समर्थन किया जा रहा था। इस बात में कोई संदेह नहीं है ऐसे आयोजनों के पीछे कोई और नहीं बल्कि मिशन पाकिस्तान का हाथ है। कुछ ही सिख ऐसे हैं, जो पाकिस्तान का साथ दे रहे हैं बाकी असली सिखों के साथ पाकिस्तान में अत्याचार किया जा रहा है। उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है, उनके गुरुद्वारों पर हमले होते हैं, उनकी बेटियों के साथ बलात्कार किया जाता है। यही मूल कारण है कि पाकिस्तान में सिखों की आबादी घट रही है।”

इसके बाद उन्होंने कहा कि वो हाल ही में खालिस्तानियों द्वारा तैयार किया गया एक नक्शा देखे। इसमें भारत के कई हिस्सों को शामिल किया गया था, यहाँ तक की दिल्ली के एक बड़े हिस्से पर भी दावा किया गया था।

सच यही है कि भारत कनाडा के खालिस्तानी समर्थकों पर कार्रवाई नहीं कर सकता है। इसका पहला कारण है कि वह कनाडा के नागरिक हैं। दूसरा भारत के पास केवल इस बात के सबूत हैं कि वह आतंकवाद का समर्थन करते हैं न कि आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं। भारत के लिए यह स्थिति वॉर ऑफ़ इनफॉर्मेशन जैसी है।

इसके बाद लार्ड रमी रेंजर ने भी इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखा। उन्होंने गुरु गोविंद सिंह की बात का उल्लेख करके अपनी बात शुरू की। उन्होंने कहा, “गुरु गोबिंद सिंह ने कहा था कि विविधता को स्वीकार किया जाना चाहिए। इसका सम्मान होना चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर इसकी रक्षा भी करनी चाहिए।”

खालसा पंथ को किसी एक क्षेत्र के लिए नहीं बनाया गया था बल्कि भारत की धार्मिक विविधता को बरकरार रखने के लिए इसका गठन हुआ था। सिखों के धर्म गुरु पूरे भारत देश को अपनी माता की तरह मानते थे। गुरु गोविंद सिंह खुद पटना में पैदा हुए थे और महाराष्ट्र में आगामी कुछ साल बिताए।

उन्होंने बताया कि पंज प्यारे भी भारत के अलग-अलग इलाकों से आते हैं। असल मायनों में खालिस्तानी समर्थक उस देश को ही नुकसान पहुँचा रहे हैं, जिन्होंने उनको शरण दी।

खालिस्तानी समर्थकों को अगर अलग क्षेत्र चाहिए तो उन्हें सबसे पहले पाकिस्तान स्थित गुरु ननकाना साहिब के जन्मस्थल से शुरुआत करनी चाहिए। उसके बाद महाराजा रणजीत सिंह का लाहौर स्थित साम्राज्य अलग शामिल करना चाहिए। पाकिस्तान के 350 गुरुद्वारे आज़ाद कराए जाएँ। भारत तो ऐसा देश है, जिसने हाल ही में गुरु गोविंद सिंह का 350वाँ जन्मदिन मनाया और गुरुनानक का 550वाँ जन्मदिन मनाया।

इसके बाद खालसा टुडे के संस्थापक सुखी चहल ने भी कई अहम बातें कहीं। उन्होंने गुरु गोविंद सिंह के कथन का ज़िक्र करते हुए अपनी बात शुरू की – “देह शिवा वर मोहे एहे।” उन्होंने कहा कि खालिस्तानी समर्थक आतंकवादियों की तस्वीरें सिखों के धर्म गुरुओं के साथ लगाते हैं।

सिखों को यह समझना चाहिए कि पंजाब का सबसे ज़्यादा नुकसान पाकिस्तान ने किया है और खालिस्तानी सिख उनका ही समर्थन कर रहे हैं। हाल ही में पाकिस्तान में एक ग्रंथी की बेटी का अपहरण किया गया था। इसके बाद उसे जबरन इस्लाम कबूल कराया गया और निकाह भी हुआ। उनका कहना था कि हैरानी की बात यह थी कि किसी भी खालिस्तानी समर्थक ने इस घटना का विरोध नहीं किया। खालिस्तानियों को अगर अपना क्षेत्र चाहिए तो उन्हें इसकी शुरुआत पाकिस्तान से करनी चाहिए। इसके बाद उन्हें चीन और अफग़ानिस्तान के इलाकों को भी शामिल करना चाहिए।

अभी सबसे बड़ी माँग यही है कि विदेशों में रहने वाले मॉडरेट सिख खालिस्तानी समर्थकों का विरोध करें। जब किसी दूसरे देश में रहने वाला सिख भारत आता है तो सबसे पहले इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरता है। जिन्होंने सिख पर इतना अत्याचार किया, उसके नाम पर हवाई अड्डे! नाम तो गुरु तेगबहादुर के नाम पर होना चाहिए, जो दिल्ली में शहीद हुए थे। अंत में पूर्व मेजर गौरव आर्या ने भी इस मुद्दे पर अपने विचार रखें। उन्होंने कहा अगर मैं आज हिन्दू हूँ तो सिखों की वजह से हूँ। हमारे अस्तित्व में एक अहम भूमिका सिख धर्म गुरुओं की है। उन्होंने हमारी सुरक्षा के लिए अपना जीवन क़ुर्बान कर दिया। हम विदेशों में भारतीय सीईओ को देख कर खुश होते हैं लेकिन पाकिस्तान के लोगों के साथ ऐसा कुछ नहीं है। वह ऐसे किसी शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति को देख कर कहते हैं कि उसमें इतनी योग्यता ही नहीं है कि वह उस मुकाम तक पहुँचे।
उनके मुताबिक़ अमेरिका सिर्फ और सिर्फ इसलिए सुरक्षित है क्योंकि अमेरिका की सेना देश के बाहर लड़ाई लड़ती है उसे देश के भीतर नहीं लड़ना पड़ता है। - स्त्रोत : ऑप इंडिया

हम रामायण के सिद्धांतों पर चल महाभारत की लड़ाई नहीं लड़ सकते हैं। भारत सरकार को कुछ मुद्दों पर अपना मत स्पष्ट करके कठोर बनना पड़ेगा। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह सब कठिन हो सकता हैं लेकिन भारत के पास क्षमता है और भारत यह सब कुछ नियंत्रित कर सकता है।

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