20 जुलाई 2019
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विदेश के लोग श्रीमद्भगवद्गीता व वेदों से प्रभावित हो रहे हैं क्योंकि वहाँ शरीर के उपभोग के लिए सुख-सुविधाएं बहुत हैं, लेकिन मन शांति के लिए उनके पास कुछ नहीं है और मन की शांति नहीं है तो सारी सुविधाएं बेकार है और मन मे शांति है तो कम सुविधाएं में भी इंसान सुखी रह सकता है। और मन की शांति देने की शक्ति केवल भारतीय संस्कृति में ही है इसलिए विदेशी लोग भी अब भारतीय संस्कृति का अनुसरण कर रहे है।
आपको बता दें कि अमेरिका की लोआ असेंबली की सुबह की प्रार्थना पूज्य गीता के श्लोक एवं वैदिक मंत्रों से हुई। तकरीबन तीन मिनट की प्रार्थना में वैश्विक सर्वमंगल, सर्वकल्याण की कामना निहित रही। विश्व हिंदू परिषद के विदेश विभाग प्रमुख पं.कृष्ण कुमार पांडेय ने ओम से शुरुआत के बाद पहले गीता के श्लोक ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव’ का पाठ किया। इसी क्रम में वैदिक मंत्र और अंत में ‘सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया’ के पाठ और शांति की कामना के साथ सुबह की प्रार्थना कराई। बाद में उन्होंने ‘ओ लार्ड यू आर माई मदर, ओ लार्ड यू आर माई फादर..’ कहकर प्रार्थना में कहे गए श्लोक और मंत्रों का अर्थ भी बताया।
यह भारतीय सनातन संस्कृति के लिए गर्व का विषय है कि गीता के श्लोक तथा वैदिक मंत्रों के साथ अमेरिका की लोआ असेंबली की शुुरुआत हुई। लोआ सीनेट ऐंड हाउस ऑफ द रिप्रेंजेटेटिव्स की ओर से सुबह की प्रार्थना के लिए पंडित कृष्ण कुमार को सीनेटर हरमन क्यूरमबैच, अमेस की रिप्रेंजेटेटिव लीजा हेडेंस और मैरीन की रिप्रेंजेटेटिव स्वाति दांडेकर की ओर से आमंत्रित किया गया था। इसी के साथ अमेरिकन असेंबली में पहली बार हिन्दू प्रार्थना का इतिहास रचा गया। स्त्रोत : सुदर्शन न्यूज़
ऐसी प्रार्थना अगर सेक्यूलर भारत में हुई होती तो शायद देश का लोकतंत्र ही खतरे में आ जाता, संवैधानिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाने वाला बता दिया गया होता, भगवाकरण की कोशिश करने वाला प्रयास बता दिया गया होता, लेकिन यह दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका की असेंबली में हुआ इससे भारतीय सनातन संस्कृति की महत्ता एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्थापित और गौरवान्वित हुई है।
विदेशी लोग भारतीय संस्कृति अपनाकर अपने को धन्य समझ रहे हैं पर हमारे देश के केंद्रीय विद्यालयों में प्रात:कालीन प्रार्थना संस्कृत और हिंदी में पढ़ी जाती हैं । इस प्रार्थना का संस्कृत भाग उपनिषद्, महाभारत आदि ग्रंथों की शिक्षाओं पर आधारित होता हैं जैसे "असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय" तथा "दया कर दान विद्या का हमें परमात्मा देना'' आदि । मध्य प्रदेश के रहने वाले एक व्यक्ति ने याचिका डाली है कि केंद्रीय विद्यालय में पढ़ी जाने वाली प्रार्थनाओं में किसी भी प्रकार के धार्मिक निर्देश नहीं दिए जा सकते । इसलिए इन्हें प्रार्थनाओं में से हटा देना चाहिए । और सुप्रीम कोर्ट इसपर सुनवाई भी करेगा।
केंद्रीय विद्यालयों में जो बच्चें प्रार्थना करते है वे केवल हिंदूओ के लिए ही नहीं बल्कि सभी मनुष्यों के लिए परम् हितकारी है ।
प्रार्थना है...
असतो मा सदगमय ॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥
मृत्योर्मामृतम् गमय ॥
इसका हिन्दू में अर्थ है कि
हे प्रभु! हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥
प्रार्थना है...
असतो मा सदगमय ॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥
मृत्योर्मामृतम् गमय ॥
इसका हिन्दू में अर्थ है कि
हे प्रभु! हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥
विदेशी लोग हमारी भारतीय संस्कृति अपनाकर उन्नति कर रहे हैं और हम पाश्चात्य संस्कृति अपनाकर अपने को बर्बाद कर रहे हैं और राष्ट्र विरोधी ताकतें तो ऐसे भी हमारी संस्कृति तोड़ने में लगी हुई है।
अपनी संस्कृति पर हो रहे कुठाराघात को रोकने के लिए हिंदुस्तानियों को संगठित होकर आवाज उठानी चाहिए ।
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