Tuesday, March 28, 2017

आसारामजी बापू पर कोलाहल, फादर रोबिन पर चुप्पी क्यों ?

आसारामजी बापू पर कोलाहल, फादर रोबिन पर चुप्पी क्यों ?

हाल ही में केरल के कोट्टियूर में एक ईसाई पादरी द्वारा नाबालिक से #बलात्कार, फिर उस पीड़िता के एक शिशु को जन्म देने का मामला प्रकाश में आया ।

#पादरी को बचाने का प्रयास न केवल राज्य सरकारी मिशनरी की ओर से किया गया, बल्कि पीड़िता के पिता ने भी प्रारंभ में चर्च की प्रतिष्ठा की रक्षा करने हेतु आरोपी का साथ दिया । 

cry bapu on asaram

उक्त मामले पर #उदारवादी और #मानवाधिकार व स्वयं सेवी #संगठन तो चुप रहे ही, #मीडिया का एक बड़ा भाग भी या तो इस पर #मौन रहा या तो कुछ ने इस घृणित मामले को एक साधारण समाचार के रूप में प्रस्तुत किया । 

इस मामले में उस तरह का हंगामा, समाचार पत्रों के मुख्यपृष्ठों पर सुर्खियां और न्यूज #चैनलों पर लंबी बहस नहीं दिखी, जो आसारामजी बापू पर लगे #यौन -उत्पीड़न के आरोप के बाद नजर आई थी ।

क्या किसी जघन्य अपराध के आरोपी पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए ? 
यदि उसका उत्तर 'हाँ' में है, तो इस मामले में मीडिया और #राजनीतिक दलों की चुप्पी का कारण क्या है ?


#कोट्टियूर में सेंट #सेबास्टियन चर्च के #कैथोलिक पादरी 48 वर्षीय फादर रोबिन उर्फ मैथ्यू वडकनचेरिल को #नाबालिक से बलात्कार के आरोप में 28 फरवरी को तब गिरफ्तार किया गया, जब वह #विदेश भागने की फिराक में था । मामला गत वर्ष मई का है । किन्तु इसका खुलासा 7 फरवरी को तब हुआ, जब इस 16 वर्षीय अविवाहिक लड़की ने कोथुपरमवा के एक निजी #अस्पताल में #शिशु को जन्म दिया । 

नवजात को एक स्थानीय अनाथालय में ले जाया गया, जहां शिशु के जन्म सूचना के बाद भी बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) ने कोई कार्यवाही नहीं की, #अदालत के हस्तक्षेप के बाद पुलिस ने इस मामले से जुड़े तथ्यों को छिपाने के आरोप में #सीडब्ल्यूसी के पूर्व अध्यक्ष फादर थॉमस जोसेफ थेरकम, समिति के एक पूर्व सदस्य वेट्टी जोस और वायनाड में अनाथालय की अधीक्षक सिस्टम #ओफेलिया को गिरफ्तार किया ।

साथ ही अस्पताल की पांच ननों पर मामला दर्ज किया गया । इन सभी पर पॉक्सो अधिनियम की #गैर-जमानती धाराओं और किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत मामला दर्ज है । कोट्टियूर की इस घटना का सबसे विभस्त पक्ष यह है कि पीड़िता के पिता ने आरोपी पादरी और चर्च को बदनामी से बचाने के लिए प्रारंभिक जाँच में झूठ बोला और कहा कि उसने ही अपनी बेटी का बलात्कार किया । किन्तु जब उसे इस अपराध के सिद्ध होने पर मिलनेवाली सजा की जानकारी हुई, तब उसने फादर रोबिन के दुष्कर्म का खुलासा पुलिस के समक्ष किया ।

पिता के अनुसार, आरोपी पादरी ने ही निजी अस्पताल के बिल का भुगतान किया और भरोसा दिया कि वह अपने 'पाप' का प्रायश्चित करेगा । किन्तु उसने उन्हें धोखा देने की कोशिश की । पीड़िता के माता-पिता के अनुसार, उनकी बेटी का मासिक धर्म अनियमित रहता था, इसलिए उन्हें अपनी बेटी के गर्भावस्था का बिलकुल भी पता नहीं चला ।

कोट्टियूर में चर्च से संबधित इस तरह का मामला देश में नया नहीं है । बीते कई वर्षो से भारत में विभिन्न कैथोलिक अधिष्ठान, चाहे वह चर्च हो या फिर कॉन्वेंट स्कूल, कई बार इस घृणित अपराध से कलंकित हो चुके है । किन्तु इसके विरोध में स्वघोषित #सेक्युलर-उदारवादी जमात और स्वयंसेवी संस्थाओं ने मुँह तक नहीं खोला ।

कोट्टियूर की घटना से पूर्व, केरल के ही #एर्नाकुलम में एक नाबालिक लड़की से बलात्कार के आरोपी 41 वर्षीय #पादरी एडविन को एक साथ दो-दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी । 

कोच्चि में एक #कॉन्वेंट स्कूल के #प्रिंसिपल फादर कुरियाकोस को #पुलिस न एक लड़के से कुकर्म के आरोप में गिरफ्तार किया था । 

2014 में केरल के ही #त्रिचूर में #सेंटपॉल #चर्च के पादरी पर 9 वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म के मामले में पुलिस ने अपना शिकंजा कसा था । 

फरवरी-अप्रैल 2014 में ही केरल में तीन कैथोलिक पादरी बच्चों से #बलात्कार के मामले में कानून की पकड़ में आए थे । 

वर्ष 2016 में #प.बंगाल में भी एक पादरी पर महिला से दुष्कर्म किए जाने का आरोप लगा था । 

इन सभी मामलो में गिरिजाघरों ने शर्मिंदा होने की बजाय केवल अपने पादरियों का ही बचाव किया । देश के #आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों में चल रही ईसाई मिशनरियों के दबाव के कारण कैथोलिक संस्थाओं का असली #एजेंडा  सामने नही आ पाता । अधिकतर यौनाचार ईश्वर को खुश करने के नाम पर किये जाते है । 

भारत में कुंठित पादरियों की संख्या बढ़ने का कारण एक यह भी है कि यहाँ बिना किसी जाँच-पड़ताल के विदेशी #संस्थाओं द्वारा पादरी नियुक्त किये जा रहे हैं । यहाँ तक कि विदेशों में यौन शोषण के आरोपियों को भारत में सम्मान पूर्वक किसी चर्च में पादरी बना दिया जाता है ।वर्ष 2015 में #जोसेफ पी. जयापॉल, जिसपर अमेरिका में एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया था और जो भागकर भारत पहुँचा था, उसे भी रोमिन कैथोलिक संस्था वेटिकन ने तमिलनाडु के एक चर्च में पादरी नियुक्त कर दिया ।

यौनचार में लिप्त पादरी अपना शिकार सर्वाधिक प्रबल भक्तों में से ही बनाते हैं । इनके परिवारों को पीढ़ियों से सिखाया जाता रहा है कि कैथोलिक पादरियों पर विश्वास करें और उन्हें पूरा सम्मान दें ।

 चर्च की प्रतिष्ठा को सर्वोपरि मानने वाले बिशप पीड़ित परिवारों के दिमाग में यह बात बैठाते हैं कि सच्चाई सामने आने पर लोगो की आस्था को चोट पहुँचेगी । कोट्टियूर में बलात्कार पीड़िता के पिता का पादरी को बचाने के लिए स्वयं झूठ बोलकर गुनाह कबूलना, उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

इस कुतिस्त काम में #विदेशी वित पोषित और तथाकथित स्वयंसेवी व मानवाधिकार संस्थाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है । वास्तव में चर्च जिस 'गोपनीयता की संस्कृति' से अपने अनुयायियों को दीक्षित करता है, उससे यौन-शोषण जैसे मामले दबे रह जाते हैं । रोमन कैथोलिक चर्च में जब #कार्डिनल बनाये जाते हैं तब वह पॉप के समक्ष वचन देते हैं कि वे हर उस बात को गुप्त रखेंगे, जिसके प्रकट होने से चर्च की बदनामी होगी या उसे नुकसान पहुंचेगा । यही कारण है कि यौन उत्पीड़न की बात उजागर होने के बाद भी सत्य को छुपाना ही चर्च अपना प्रथम कर्तव्य मानता है ।

कैथोलिक पादरियों से जुड़ी बलात्कार की घटनाओं को लेकर 19 मार्च को ईसाई संगठनों ने 'विशप हॉउस' के बाहर प्रदर्शन किया था । उनका कहना था कि महिलाओं और नाबालिकों को अपराध स्वीकारोक्ति 'कंफेक्शन' की विधि पादरी न करें, क्योंकि पादरी उस दौरान महिलाओं और #लड़कियों से न केवल प्रतिकूल प्रश्न पूछते हैं बल्कि मौके का फायदा उठाकर #यौन-शोषण  भी करते है ।


इस कटु सत्य की पुष्टि 26 वर्ष तक एक कैथोलिक चर्च में नन रही सिस्टर जेसमैं अपनी आत्मकथा - 'अमिन द #ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ इ नन' में भी कर चुकी है ।

सिस्टर जेसमौ लिखती हैं कि जब वह एक दिन कंफेक्शन के लिए गई, तब फादर ने उन्हें 'किस' करने की अनुमति मांगी, जिसके इंकार करने पर फादर ने तर्क दिया कि यह सब पवित्र ग्रंथ बाइबल के अनुरूप है । आज भी जब कोट्टियूर की घटना के बाद ऐसा ही विरोध एक संगठन द्वारा किया जा रहा है, तब भी केरल कैथलिक विशप समिति पवित्र ग्रंथ #बाइबल के सिद्धांतों का सहारा लेकर इस आक्रोश को निरस्त कर रहे हैं । 

बलात्कार या यौन उत्पीड़न या महिलाओं से सम्बंधित कोई भी अपराध #सामाजिक कलंक है । चाहे इसका आरोप किसी भी समुदाय से सम्बंधित क्यों न हो, दोषी सिद्ध होने पर उसे कड़ी सजा देने का प्रावधान भारतीय दंड संहिता में है । 

क्या कारण है कि आसारामजी बापू जैसे हिन्दू साधु-संतों के इस तर्ज घृणित मामले में आने के बाद स्वघोषित सेक्युलरिस्ट, #उदारवादी और मीडिया के बड़े भाग का ध्यान तो इस ओर केंद्रित हो जाता है और बिना किसी सबूत वो उन्हें दिन रात बदनाम भी करते हैं पर दूसरी ओर फादर रोबिन जैसे बलात्कारी आरोपियों पर इस तरह का उग्र #रवैया देखने को नहीं मिलता !!

आखिर क्यों ?

 स्त्रोत: स्वदेश अखबार

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