27 जुलाई 2020

कुछ समय पूर्व तत्कालीन सरकार द्वारा भगवान राम अस्तित्व ही स्वीकार नही कर रहे थे और रामसेतु तोड़ने की बात भी कर रहे थे लेकिन रामसेतु तोड़ते के शुरुआती में भी भगवान का अस्तित्व होने का भास हो गया था और उससे पहले भी एक ऐसा चमत्कार हुआ कि सुनकर सभी दंग रह गए।
अयोध्या में 22 और 23 दिसंबर 1949 की उस दरम्यानी रात तीन गुंबदों के नीचे क्या हुआ था, यकीनी तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है। एक मुस्लिम कॉन्स्टेबल के बयान का हवाला देकर एक पक्ष वहॉं भगवान के प्रकट होने की बातें करता है तो दूसरा पक्ष फैजाबाद के तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह और जिलाधिकारी केकेके नायर की भूमिका को संदिग्ध बताकर दावा करता है कि मूर्तियॉं बाहर से लाकर रखी गई थी।
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखते हैं कि उस रात कड़ाके की ठंड थी। अयोध्या घने कोहरे में लिपटा था। घुप्प अँधेरा पसरा था। कुछ दिख नहीं रहा था। राम जन्मभूमि परिसर की सुरक्षा में तैनात कोई दो दर्जन पुलिसवाले (पीएसी) तंबू में सो रहे थे। अंदर दो सिपाहियों की ड्यूटी बारी-बारी से थी।
पिछले नौ दिन से वहॉं रामचरितमानस का नवाह पाठ चल रहा था। यज्ञ-हवन का दिन होने के कारण वहॉं इतने ज्यादा पुलिस वाले तैनात थे। अमूमन समूचा परिसर तीन-चार पुलिसवालों के हवाले ही रहता था। रात 12 बजे से कॉन्स्टेबल अब्दुल बरकत की ड्यूटी थी। बरकत समय से ड्यूटी पर नहीं पहुॅंचे। रात एक बजे के बाद कॉन्स्टेबल शेर सिंह उन्हें नींद से जगा ड्यूटी पर भेजते हैं। जगमग रोशनी में अष्टधातु की मूर्ति देख सिपाही बरकत को काटो तो खून नहीं। बिल्कुल अवाक! उन्होंने एफआईआर में बतौर गवाह पुलिस को बताया- कोई 12 बजे के आसपास बीच वाले गुंबद के नीचे अलौकिक रोशनी हुई। रोशनी कम होने पर मैंने जो देखा उस पर विश्वास नहीं हुआ। वहाँ अपने तीन भाइयों के साथ भगवान राम की बालमूर्ति विराजमान थी।
बरकत का बयान अयोध्या में राम जन्मभूमि कार्यशाला के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है। इसमें बरकत के हवाले से कहा गया है- मस्जिद के भीतर से नीली रोशनी आ रही थी, जिसे देख मैं बेहोश हो गया।
हेमंत शर्मा लिखते हैं कि सुबह चार बजे के आसपास रामजन्मभूमि स्थान में मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई थी। बाहर टेंट में खबर आई कि भगवान प्रकट हो गए हैं। तड़के साढ़े चार बजे के आसपास मंदिर में घंटे-घड़ियाल बजने लगे, साधु शंखनाद करने लगे और वहॉं मौजूद लोग जोर-जोर से गाने लगे,
ये पंक्तियॉं गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के बालकाण्ड में लिखी है, भगवान के जन्म लेने के मौके पर। कितना दिलचस्प संयोग है कि तुलसीदास ने इन पंक्तियों की रचना उसी कालखण्ड में की थी, जब अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद बनाई गई थी!
जो नास्तिक लोग भगवान के अस्तित्व को जो नही मानते है उनके लिए एक तमाचा है। कुछ लोग तर्क करते है कि भगवान है ही नही ये दुनिया ऑटोमेटिक चलती है, जैसे घड़ी चलती है वैसे ही दुनिया चल रही है, लेकिन भाई घड़ियाल चल रही है ऑटोमेटिक ये सही बात है लेकिन उसको बनाने वाला भी तो कोई है वैसे ही इतनी बड़ी दुनिया सुचारू रूप से चल रही है, हम खाते है रोटी लेकिन उसमें से खून, हड्डियां, वीर्य बन जाता है, गाय घास खाती है लेकिन उसका दूध बन जाता है ये सब ऑटोमेटिक होता है लेकिन आटोमेटिक सिस्टम फिट करने वाला तो कोई होगा और ये वही ईश्वर है उनको चाहे राम कहो या कृष्ण अथवा ईश्वर लेकिन सबकुक उन्होंने ही बनाया है और उन ईश्वर की सत्ता से ही सृष्टि चल रही है। इसलिए भगवान पर श्रद्धा करनी चाहिए और उनको प्रार्थना करनी चाहिए वही हमे सच्चा मार्गदर्शन दे सकते है और दुखों, मुसीबतों से बचा सकते है।
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भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥
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