27 अप्रैल 2019
फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण द्वारा नारी अधिकारों के समर्थन में एक बयान जारी किया गया है कि नारी को यह अधिकार होना चाहिए कि वह विवाह पूर्व किसी से भी शारीरिक सम्बन्ध बना सके । नारी अधिकारों को लेकर अनेक अंग्रेजी अख़बारों में कुछ लेख प्रकाशित हुए जिनका विषय भी महिला अधिकारों की बात करना है ।
नारी अधिकारों की आड़ में महिलाओं को क्या सन्देश दिया जा रहा है यह जानना अत्यंत आवश्यक है । 16 दिसंबर के निर्भया कांड पर एक विदेशी पत्रकार द्वारा चलचित्र बनाने पर विवाद खड़ा हो गया है क्योंकि बलात्कार के दोषी ड्राइवर मुकेश की विकृत सोच को सभी भारतीय पुरुषों की सोच के रूप में प्रचारित कर भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा हैं जबकि यह सोच का विषय हैं कि ISIS द्वारा इराक में यजीदी लड़कियों को गुलाम बनाकर बेचने, बोको हराम द्वारा अफ्रीका में सैकड़ों स्कूल की लड़कियों का अपहरण कर उनके जबरन धर्म परिवर्तन कर उनका मुस्लिम आतंकवादियों से विवाह करने, अनेक मुस्लिम मुल्कों में आदि को एक से अधिक विवाह करने, पाकिस्तान में बलात्कार की शिकार महिला को बलात्कार सिद्ध करने के लिए दो पुरुषों की गवाही प्रस्तुत करने, खाड़ी मुस्लिम देश में सामूहिक बलात्कार की शिकार महिला को गर्भावस्था में बलात्कार के लिए कोड़े लगाने जैसे घटनाओं में विदेशी पत्रकार मौन रहना दोहरे मापदंड को सिद्ध करता है ।
8 मार्च, 2015 के हिंदुस्तान टाइम्स अख़बार में महिला दिवस के अवसर पर महिलाओं को आज़ादी के नाम पर कुछ अधिकार दिए जाने की वकालत की गई है । इन कुछ अधिकारों को पढ़कर आप यह सोचिये की इन कुछ अधिकारों को देने से नारी जाति का उत्थान होगा या पतन होगा । यह अधिकार है उन्मुक्त सम्बन्ध बनाने का अधिकार, विवाह पूर्व शारीरिक सम्बन्ध बनाने का अधिकार, समलैंगिकता का अधिकार, शराब आदि नशा करने का अधिकार, पुरुषों से दोस्ती करने का अधिकार, कम से कम कपड़े पहनने का अधिकार, सन्नी लियॉन बनने का अधिकार, वेश्या बनने का अधिकार, अश्लील फिल्में देखने का, अनेक पुरुषों से सम्बन्ध बनाने का अधिकार, लिव इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार आदि । इस सब के साथ एक सन्देश यह भी दिया गया कि आज की नारी सती सावित्री नहीं है, न केवल एक आदमी के साथ वह अपना पूरा जीवन बिताने वाली हैं, उसे अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए अथवा अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं हैं, उसे खुले में सांस लेने का पूरा अधिकार हैं, अब उसे चरित्रवान बनने की कोई आवश्यकता नहीं हैं ।
अब पाठक दूसरे पक्ष को समझें । सर्वप्रथम तो पश्चिमी सोच का अन्धानुसरण करने वाले लोग जिन बातों को नारी का अधिकार बताकर प्रचारित कर रहे हैं वह अधिकार नहीं अपितु मीठा जहर हैं जिसका सेवन करने वाला भोग की अंधी गलियों में सदा-सदा के लिए भटकता है । जब निर्भया जैसे कांड होते हैं तो आप उसका दोष फिल्मों आदि के द्वारा बढ़ावा दिए गए नंगपने से होने वाले मानसिक प्रदुषण को क्यों नहीं ठहराते ? यह कहने में आपको शर्म क्यों आती हैं कि निर्भया कांड को अंजाम देने वाले बलात्कारी नियमित रूप से अश्लील फिल्में देखते थे, शराबी और मांसाहारी थे अर्थात सदाचार से कोसो दूर थे ।
जब कोई सदाचार की बात करता है जो पुरुष और नारी दोनों के लिए समान रूप से अनिवार्य नियम हैं तब आप उसे पुरानी, दकियानूसी, आज के ज़माने के लिए नहीं आदि बातें करते हैं एवं खजुराओ की नग्न मूर्तियां एवं वात्सायन के कामसूत्र का बहाना बनाते हैं । इसलिए स्पष्ट रूप से अश्लीलता फैलाने के आप भी दोषी हैं क्योंकि आप सदाचार का सन्देश देने वाली शिक्षा के स्थान पर व्यभिचार को बढ़ावा देने वाली बातों को प्रचारित हैं । एक और व्यभिचार को बढ़ावा देना दूसरी और उससे होने वाले निर्भया जैसे कांड होने पर छाती पीट-पीट कर रोना और अंत में इस सब पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर फ़िल्म बनाकर पश्चिमी देशों में हमारी छवि ख़राब करना आपकी विकृत मानसिकता को प्रकट करता है ।
नारी के अधिकारों को अगर जानना भी हो तो वेदों से जानो। वेद कहते हैं - मेरे पुत्र शत्रु हन्ता हों और पुत्री तेजस्वनी हो (ऋग्वेद 10/159/3) ,राष्ट्र में विजयशील सभ्य वीर युवक पैदा हो, वहां साथ ही बुद्धिमती नारियों उत्पन्न हो (यजुर्वेद 22/22)। वेदों में पत्नी को उषा के सामान प्रकाशवती, वीरांगना, वीर प्रसवा, विद्या अलंकृता, स्नेहमयी माँ, पतिव्रता, अन्नपूर्णा, सदगृहणी, सम्राज्ञी आदि से संबोधित किया गया है, जो निश्चित रूप से नारी जाति को उचित सम्मान प्रदान करते हैं ।
वेदों में दहेज शब्द का सहीं अर्थ बताया गया है । दहेज़ गुणों का नाम हैं और वेद कहते है कि पिता ज्ञान, विद्या, उत्तम संस्कार आदि गुणों के साथ वधु को वर को भेंट करे और अंत में हमें यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि वेदादि शास्त्रों में नारी को पुरुष से बढ़ कर अधिकार दिया गया है । मनु स्मृति कहती हैं "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:, यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:अर्थात जिस कुल में नारियों की पूजा, अर्थात सत्कार होता है, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है । नारी के अधिकार उसके उच्च विचार एवं महान गुणों से सुशोभित होना है नाकि व्यभिचारी बनना है ।
इसलिए महिला अधिकारों की आड़ में समाज को व्यभिचार का नहीं अपितु सदाचार का सन्देश देना चाहिए । नारी का सम्मान तभी होगा जब विचारों में पवित्रता होगी एवं सदाचारी जीवन होगा । निर्भया को सच्ची श्रद्धांजलि समाज को सदाचारी बनाना होगा जिससे हर नारी अपने आपको सुरक्षित समझे एवं हर पुरुष अपने आपको नारी का रक्षक समझे । महिला अधिकारों की आड़ में पश्चिमी पाखंड के स्थान पर वैदिक सदाचार को अपनाये । -डॉ विवेक आर्य
हे भारत की माताओं, बेटियों ! अपनी महिमा में जागो । हिम्मत करो । सिनेमा (चलचित्र) देखकर या 'डिस्को' नृत्य करके अपनी जीवनशक्ति नष्ट करने वालों को वह भले मुबारक हो, किंतु आप तो भारत की शान हो । हे माताओं-बहनों-बेटियों ! तुम फिर से अपनी आध्यात्मिक शक्ति जगाओ । यहाँ तक कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी माँ अनसूया के द्वार पर भिक्षा माँगने पधारे थे । जो महानता अनसूया में थी वही महानता बीजरूप में आपके अंदर भी छुपी है ।
हे भारत की नारी ! तू अपनी शान को फिर से बुलंद कर ! फिल्मों की, पाश्चात्य जगत के तुच्छ नाच-गान और फैशन की गुलाम मत हो वरन् अपनी महिमा को पहचान ।
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