Tuesday, April 30, 2019

नारायण साईं का फैसला आया, लेकिन क्या पहले ऐसा कहीं हुआ है ?

30 अप्रैल 2019 

*🚩गुजरात के सूरत की सेशन कोर्ट ने नारायण साईं के ऊपर लगे आरोपों के सम्बंध में फैसला सुना दिया, आजीवन कारावास दिया गया, पर पहले ऐसी कहीं कोई घटना हुई है ? वे भी आपको जानना जरूरी है ।*

*🚩नारायण साईं पर केस*
*🚩हिंदू संत आसाराम बापू और उनके बेटे नारायण साईं पर गुजरात के सूरत की 2 महिलायें, जो सगी बहनें हैं, उनमें से बड़ी बहन ने बापू आसारामजी के ऊपर 2001 में और छोटी बहन ने नारायण साईं जी पर 2003 में दुष्कर्म हुआ, ऐसा आरोप लगाया । अक्टूबर 2013 में एफआईआर दर्ज की गई ।*

*🚩नारायण साईं पर 11 साल और बापू आसारामजी पर 12 साल पुराना केस दर्ज किया गया । बड़ी बहन FIR में लिखती है कि 2001 में मेरे साथ बापू आसारामजी ने दुष्कर्म किया, लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि बड़ी बहन ने छोटी बहन को 2002 में संत आसारामजी आश्रम में समर्पित करवाया था । उसके बाद छोटी बहन 2005 और बड़ी बहन 2007 तक उनके आश्रम में रहती है । आश्रम छोड़कर जाने के बाद 2010 में उनकी शादी हो गई और जनवरी 2013 तक वो बापू आसारामजी और नारायण साईं के कार्य्रकम में आती रहती हैं, सत्संग सुनती हैं, कीर्तन करती हैं ।*

*🚩बड़ा आश्चर्य तो ये जानकर हुआ कि जब बड़ी बहन के साथ दुष्कर्म हुआ उसके बाद कोई अपनी छोटी बहन को उसी आश्रम में समर्पित करवाया, क्या ऐसा कभी हो सकता है ? लेकिन उसने किया फिर 2007 तक आश्रम में रहे, 2010 में शादी की 2013 तक उनके पास जाते रहे और 2013 में आरोप लगाया इससे तो मन में एक ही प्रश्न आता है कि कहीं यह साजिश तो नहीं है ?*

*🚩बता दें कि पुलिस ने भी दोनों लड़कियों का 5 से 6 बार बयान लिया उसमें हरबार बयान विरोधाभासी आये और वे हर बार बयान बदल देती थीं । इससे संशय होता है कि ये केस कहीं उपजाऊ, बनावटी तो नहीं है ?*

*🚩इससे बड़ी विडंबना देखिये कि दिसम्बर 2014 में लड़की केस वापस लेना चाहती है, लेकिन सरकार द्वारा विरोध किया जाता है और न्यायालय उसको केस वापिस लेने को मना कर देता है ।*

*🚩बचाव पक्ष के वकील का कहना है कि कोई प्रूफ नहीं है फिर भी दोबारा आजीवन कारावास देना विडंबना नहीं लग रही है ?*

*_🚩6 साल पुराना केस खारिज_*

*🚩आपको बता दें कि कुछ समय पहले दिल्ली की एक त्वरित अदालत के न्यायाधीश प्रवीण कुमार ने 2010 में 30 वर्षीय एक विवाहित महिला को नशीला पेय पदार्थ पिलाकर कथित रूप से उससे बलात्कार करने के आरोपी दिल्ली निवासी को यह कहकर बरी कर दिया कि आरोपी व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने में छह साल की देरी की कोई वैध वजह नहीं बताई गई ।*

*🚩जब 6 साल पुराना केस खारिज हो जाता है तो 11 साल पुराना केस कैसे साबित हो रहा है ? बड़ा अजीब मससुस हो रहा है ।*

*_🚩आंध्रप्रदेश का मामला_*

*🚩बता दें कि आंध्र प्रदेश का पी सत्यम बाबू नाम के युवक पर छात्रा का रेप के बाद हत्या के आरोप में सेशन कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा दे दी लेकिन आठ साल बाद हाईकोर्ट ने निर्दोष बरी कर दिया । पुलिस ने झूठे केस में फँसा दिया था ।*

*_🚩साधु-संतों के खिलाफ मामले_*

*🚩7 दिन पहले केरल स्थित कोल्लम के पनमना आश्रम के 'हिन्दू ऐक्या वेदी’ नाम के संगठन से जुड़े 54 साल के एक स्वामी जी मीडिया की सुर्खियों में रहे , मीडिया ने उनकी खूब बदनामी की । बताया गया कि लड़की का बलात्कार करने की कोशिश की तो चाकू से उनका लिंग काट दिया गया ।*

*🚩जबकि स्वामी ने बताया था कि लिंग मेरे काम का नही था इसलिए काट दिया और युवती ने वकील को खत लिखकर कहा कि स्वामी जी की ओर से मेरे साथ कभी भी यौन उत्पीड़न नहीं किया गया है । स्वामी को फंसाने के लिए षडयंत्र किया गया था ।*

*🚩गुजरात द्वारका के केशवानंदजी पर कुछ समय पूर्व एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया और सेशन कोर्ट ने सजा भी सुना दी लेकिन 7 साल बाद उनको हाईकोर्ट ने निर्दोष बरी कर दिया ।*

*🚩85 वर्षीय श्री कृपालु महाराज को भी बलात्कार के झूठे आरोप में जेल भेजा गया था ।*

*🚩दक्षिण भारत के स्वामी नित्यानन्द जी के ऊपर भी सेक्स सीडी मिलने का आरोप लगाया गया और उनको जेल भेज दिया गया बाद में उनको कोर्ट ने क्लीनचिट देकर बरी कर दिया ।*

*🚩शिवमोगा और बैंगलोर मठ के शंकराचार्य राघवेश्वर भारती जी पर भी एक गायिका को 3 करोड़ नही देने पर 167 बार बलात्कार करने का आरोप लगाया था । उनको भी कोर्ट ने निर्दोष बरी कर दिया ।*

*🚩कई न्यायालयों ने तो चिंता भी जताई है कि फेक रेप केस करने का एक नया ट्रेड चल पड़ा है । जिसमें बदला लेने की भावना और साजिश के तहत निर्दोषों को फंसाया जा रहा है ।*

*🚩हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करने की पुरजोश साजिश चल रही है क्योंकि भारत में कई करोड़ जनता हिन्दू साधु-संतों में श्रद्धा रखती है और उनके बताये मार्ग अनुसार कार्य करती है । पर राष्ट्र विरोधी ताकतों द्वारा जिनको भारत में धर्मांतरण करवाना है, विदेशी प्रोडक्ट बेचना है, पश्चिमी संस्कृति लाना है उनको ये सब सहन नही होता है क्योंकि उनके आड़े आते हैं ये हिन्दू साधु-संत । इसलिए राष्ट्र विरोधी ताकतें मीडिया का दुरूपयोग करके साधु-संतों को बदनाम करने की साजिश करती हैं और कुछ स्वार्थी, लालची नेताओं से मिलकर उनको जेल में भी भिजवा दिया जाता है या हत्या कर दी जाती है ।*

*🚩अतः हिंदुस्तानी सावधान रहें अपने ही धर्मगुरुओं पर लगे आरोप सच्चा मानकर हंसी मजाक नही उड़ाये ओर अपने धर्म का नाश नही करे, षडयंत्र को समझे और उसका डटकर विरोध करें ।*

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Monday, April 29, 2019

जिन्ना की तारीफ़, लेकिन यह इतिहास आपके कलेजों को फाड़ देगा

29 अप्रैल 2019 

🚩हाल ही में एक नेता ने पाकिस्तान के जन्में मोहम्मद अली जिन्ना को क्रांतिकारी और देश के लिए संघर्ष करने वाला बताया । हालाँकि बाद में वह अपने बयान से पलट गए । पूर्व में एक वरिष्ठ नेता ने जिन्ना को महान बता दिया था । मेरे विचार से जिन्ना के गुणगान करने वाला हर नेता उन हिन्दुओं का अपमान कर रहा है ।  जिन्होंने 1947 में अपना सब कुछ धर्मरक्षा के लिए लुटा दिया । यह अपमान हमारे पूर्वजों का है । जिन्होंने अपने पूर्वजों की धरती को त्याग दिया मगर अपना धर्म नहीं छोड़ा । चाहे उसके लिए उन्होंने अपना घर, परिवार, खेत-खलिहान सब कुछ त्यागना पड़ा । उन महान आत्माओं ने धर्मरक्षा के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया । आज के नेता अपनी बयानबाजी कर उनके त्याग का अपमान कर रहे हैं ।   

🚩इस लेख में 1947 में जिन्ना के ईशारों पर जो अत्याचार पाकिस्तान में बलूच रेजिमेंट ने हिन्दुओं पर किया । उसका उल्लेख किया गया है । हर हिन्दू को यह इतिहास ज्ञात होना चाहिए । ताकि कोई आगे से जिन्ना के गुणगान करें तो उसे यथोचित प्रतिउत्तर दिया जा सके । 
🚩विभाजन पश्चात भारत सरकार ने एक तथ्यान्वेषी संगठन बनाया जिसका कार्य था पाकिस्तान छोड़ भारत आये लोगों से उनकी जुबानी अत्याचारों का लेखा जोखा बनाना । इसी लेखा जोखा के आधार पर गांधी हत्याकांड की सुनवाई कर रहे उच्च न्यायालय के जज जी डी खोसला लिखित, 1949 में प्रकाशित , पुस्तक ' स्टर्न रियलिटी'  विभाजन के समय दंगों , कत्लेआम,हताहतों की संख्या और राजनैतिक घटनाओं को दस्तावेजी स्वरूप प्रदान करती है । हिंदी में इसका  अनुवाद और समीक्षा ' देश विभाजन का खूनी इतिहास (1946-47 की क्रूरतम घठनाओं का संकलन)' नाम से सच्चिदानंद चतुर्वेदी ने किया है । नीचे दी हुई चंद घटनायें इसी पुस्तक से ली गई हैं जो ऊंट के मुंह में जीरा समान हैं ।

🚩11 अगस्त 1947 को सिंध से लाहौर स्टेशन पह़ुंचने वाली हिंदुओं से भरी गाड़ियां खून का कुंड बन चुकी थीं। अगले दिन गैर मुसलमानों का रेलवे स्टेशन पहुंचना भी असंभव हो गया । उन्हें रास्ते में ही पकड़कर उनका कत्ल किया जाने लगा । इस नरहत्या में बलूच रेजिमेंट ने प्रमुख भूमिका निभाई । 14 और 15 अगस्त को रेलवे स्टेशन पर अंधाधुंध नरमेध का दृश्य था । एक गवाह के अनुसार स्टेशन पर गोलियों की लगातार वर्षा हो रही थी । मिलिट्री ने गैर मुसलमानों को स्वतंत्रता पूर्वक गोली मारी और लूटा ।

🚩19 अगस्त तक लाहौर शहर के तीन लाख गैर मुसलमान घटकर मात्र दस हजार रह गये थे । ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति वैसी ही बुरी थी । पट्टोकी में 20 अगस्त को धावा बोला गया जिसमें ढाई सौ गैर मुसलमानों की हत्या कर दी गई । गैर मुसलमानों की दुकानों को लूटकर उसमें आग लगा दी गई । इस आक्रमण में बलूच मिलिट्री ने भाग लिया था ।

🚩25 अगस्त की रात के दो बजे शेखपुरा शहर जल रहा था । मुख्य बाजार के हिंदू और सिख दुकानों को आग लगा दी गई थी । सेना और पुलिस घटनास्थल पर पहुंची । आग बुझाने के लिये अपने घर से बाहर निकलने वालों को, गोली मारी जाने लगी । उपायुक्त घटनास्थल पर बाद में पहुंचा । उसने तुरंत कर्फ्यू हटाने का निर्णय लिया और उसने और पुलिस ने यह निर्णय घोषित भी किया । लोग आग बुझाने के लिये दौड़े ।पंजाब सीमा बल के बलूच सैनिक, जिन्हें सुरक्षा के लिए लगाया गया था, लोगों पर गोलियाँ बरसाने लगे ।एक घटनास्थल पर ही मर गया, दूसरे हकीम लक्ष्मण सिंह को रात में ढाई बजे मुख्य गली में जहाँ आग जल रही थी, गोली लगी । अगले दिन सुबह सात बजे तक उन्हें अस्पताल नहीं ले जाने दिया गया । कुछ घंटों में उनकी मौत हो गई ।

🚩गुरुनानक पुरा में 26 अगस्त को हिंदू और सिखों की सर्वाधिक व्यवस्थित वध की कार्यवाही हुई । मिलिट्री द्वारा अस्पताल में लाये जाने सभी घायलों ने बताया कि उन्हें बलूच सैनिकों द्वारा गोली मारी गयी या 25 या 26 अगस्त को उनकी उपस्थिति में मुस्लिम झुंड द्वारा छूरा या भाला मारा गया । घायलों ने यह भी बताया कि बलूच सैनिकों ने सुरक्षा के बहाने हिंदू और सिखों को चावल मिलों में इकट्ठा किया । इन लोगों को इन स्थानों में जमा करने के बाद बलूच सैनिकों ने पहले उन्हें अपने कीमती सामान देने को कहा और फिर निर्दयता से उनकी हत्या कर दी । घायलों की संख्या चार सौ भर्ती वाले और लगभग दो सौ चलंत रोगियों की हो गई । इसके अलावा औरतें और सयानी लड़कियाँ भी थीं जो सभी प्रकार से नंगी थीं । सर्वाधिक प्रतिष्ठित घरों की महिलाएं भी इस भयंकर दु:खद अनुभव से गुजरी थीं । एक अधिवक्ता की पत्नी जब अस्पताल में आई तब वस्तुतः उसके शरीर पर कुछ भी नहीं था । पुरुष और महिला हताहतों की संख्या बराबर थी । हताहतों में एक सौ घायल बच्चे थे ।

🚩शेखपुरा में 26 अगस्त की सुबह सरदार आत्मा सिंह की मिल में करीब सात आठ हजार गैर मुस्लिम शरणार्थी शहर के विभिन्न भागों से भागकर जमा हुये थे । करीब आठ बजे मुस्लिम बलूच मिलिट्री ने मिल को घेर लिया । उनके फायर में मिल के अंदर की एक औरत की मौत हो गयी । उसके बाद कांग्रेस समिति के अध्यक्ष आनंद सिंह मिलिट्री वालों के पास हरा झंडा लेकर गये और पूछा आप क्या चाहते हैं । मिलिट्री वालों ने दो हजार छ: सौ रुपये की मांग की जो उन्हें दे दिया गया ।इसके बाद एक और फायर हुआ ओर एक आदमी की मौत हो गई । पुन: आनंद सिंह द्वारा अनुरोध करने पर बारह  सौ रुपये की मांग हुयी जो उन्हें दे दिया गया । फिर तलाशी लेने के बहाने सबको बाहर निकाला गया।सभी सात-आठ हजार शरणार्थी बाहर निकल आये । सबसे अपने कीमती सामान एक जगह रखने को कहा गया । थोड़ी ही देर में सात-आठ मन सोने का ढेर और करीब तीस-चालीस लाख जमा हो गये । मिलिट्री द्वारा ये सारी रकम उठा ली गई । फिर वो सुंदर लड़कियों की छंटाई करने लगे । विरोध करने पर आनंद सिंह को गोली मार दी गयी । तभी एक बलूच सैनिक द्वारा सभी के सामने एक लड़की को छेड़ने पर एक शरणार्थी ने सैनिक पर वार किया । इसके बाद सभी बलूच सैनिक शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाने लगे । अगली प्रांत के शरणार्थी उठकर अपनी ही लड़कियों की इज्जत बचाने के लिये उनकी हत्या करने लगे ।

🚩1 अक्टूबर की सुबह सरगोधा से पैदल आने वाला गैर मुसलमानों का एक बड़ा काफिला लायलपुर पार कर रहा था । जब इसका कुछ भाग रेलवे फाटक पार कर रहा था अचानक फाटक बंद कर दिया गया । हथियारबंद मुसलमानों का एक झुंड पीछे रह गये काफिले पर टूट पड़ा और बेरहमी से उनका कत्ल करने लगा । रक्षक दल के बलूच सैनिकों ने भी उनपर फायरिंग शुरु कर दी । बैलगाड़ियों पर रखा उनका सारा धन लूट लिया गया। चूंकि आक्रमण दिन में हुआ था , जमीन लाशों से पट गई । उसी रात खालसा कालेज के शरणार्थी शिविर पर हमला किया गया । शिविर की रक्षा में लगी सेना ने खुलकर लूट और हत्या में भाग लिया । गैर मुसलमान भारी संख्या में मारे गये और अनेक युवा लड़कियों को उठा लिया गया ।

🚩अगली रात इसी प्रकार आर्य स्कूल शरणार्थी शिविर पर हमला हुआ । इस शिविर के प्रभार वाले बलूच सैनिक अनेक दिनों से शरणार्थियों को अपमानित और उत्पीड़ित कर रहे थे । नगदी और अन्य कीमती सामानों के लिये वो बार बार तलाशी लेते थे । रात में महिलाओं को उठा ले जाते और बलात्कार करते थे । 2 अक्टूबर की रात को विध्वंश अपने असली रूप में प्रकट हुआ । शिविर पर चारों ओर से बार-बार हमले हुये । सेना ने शरणार्थियों पर गोलियाँ बरसाईं । शिविर की सारी संपत्ति लूट ली गई । मारे गये लोगों की सहीं संख्या का आंकलन संभव नहीं था क्योंकि ट्रकों में बड़ी संख्या में लादकर शवों को रात में चेनाब में फेंक दिया गया था ।

🚩करोर में गैर मुसलमानों का भयानक नरसंहार हुआ । 7 सितंबर को जिला के डेढ़ेलाल गांव पर मुसलमानों के एक बड़े झुंड ने आक्रमण किया । गैर मुसलमानों ने गांव के लंबरदार के घर शरण ले ली । प्रशासन ने मदद के लिये दस बलूच सैनिक भेजे । सैनिकों ने सबको बाहर निकलने के लिये कहा । वो औरतों को पुरूषों से अलग रखना चाहते थे । परंतु दो सौ रूपये घूस लेने के बाद औरतों को पुरूषों के साथ रहने की अनुमति दे दी । रात मे सैनिकों ने औरतों से बलात्कार किया । 9 सितंबर को सबसे इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया । लोगों ने एक घर में शरण ले ली । बलूच सैनिकों की मदद से मुसलमानों ने घर की छत में छेद कर अंदर किरोसिन डाल आग लगा दी । पैंसठ लोग जिंदा जल गये ।

🚩यह लेख हमने संक्षिप्त रूप में दिया है।  विभाजन से सम्बंधित अनेक पुस्तकें हमें उस काल में हिन्दुओं पर जो अत्याचार हुआ, उससे अवगत करवाती है, हर हिन्दू को इन पुस्तकों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। क्योंकि "जो जाति अपने इतिहास से कुछ सबक नहीं लेती उसका भविष्य निश्चित रूप से अंधकारमय होता है। " -डॉ विवेक आर्य 

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Sunday, April 28, 2019

वीर हरिसिंह नलवा ने अफगानिस्तान तक लहरा दिया था भग्वाराज

28 अप्रैल 2019 

🚩 *भारतवर्ष विश्व के उन समृद्ध राष्ट्रों में सबसे ऊपर हैं जिनका इतिहास वीरों की गाथाओ से भरा हुआ हैं किन्तु दुर्भाग्य से वर्तमान इतिहास लेखन में ऐसे लोगो की छाप रही हैं जिन्हें भारत से कभी प्रेम नहीं रहा और जिनकी रूचि हमेशा भारत के इतिहास के प्रति वामपंथ के पूर्वाग्रह से ग्रसित रही हैं। भारत के पिछले 250 वर्ष के इतिहास में जब भी वीर योद्धाओ का नाम लिया जायेगा, वीर शिरोमणि हरी सिंहजी नलवा के नाम के उल्लेख के बिना अधुरा ही माना जायेगा।*
🚩 *भगवान् कृष्ण ने गीता में कहा हैं जब-जब पृथ्वी पर अधर्म का साम्राज्य बढ़ता हैं तब-तब ईश्वर किसी न किसी रूप में जन्म लेते हैं, और धर्म की स्थापना करते हैं। ऐसे ही समय में जब भारत वर्ष में मुस्लिम आक्रांताओ के जुल्म से जनता त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही थी, उस समयवीर शिरोमणि नलवाजी का जन्म वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित गुजरांवाला में 28 अप्रैल, 1791 को सिख पंथ मानने वाले क्षत्रिय परिवार में हुआ था| उनके पिताजी का नाम गुरदयाल उप्पल और माताजी का नाम धर्मा कौर था| उनको बचपन में सभी प्रेमवश “हरिया” के नाम से पुकारते थे। 7 वर्ष की उम्र में आपके पिताजी का देहावसान हो गया था। आपका नाम हरिसिंह था और नलवा (राजा नल के समान वीरता दिखाने वाला) उपनाम महाराजा रणजीत सिंहजी द्वारा उनको दिया गया था। महाराजा रणजीतसिंहजी ने सन 1805 में वसंतोत्सव के समय एक प्रतिभा खोज प्रतियोगिता का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए तीरंदाजी, तलवार और भाला चलाने में सबसे अद्भुत प्रदर्शन किया।*

🚩 *इस अद्भुत प्रदर्शन के बाद महाराजा रणजीत सिंहजी ने उनको अपनी सेना में भर्ती कर लिया था। अपने रणकौशल और सुझबुझ के चलते हरिसिंहजी जल्द ही महाराजा के विश्वासपात्र हो गए। एक बार शिकार पर जाते समय महाराजा ने हरिसिंहजी को अपने विश्वासपात्र के रूप में साथ ले लिया। शिकार की तलाश में घने जंगल की ओर जाते समय अचानक एक आदमखोर शेर ने महाराजा रणजीतसिंहजी पर हमला कर दिया। इस आकस्मिक हमले में कोई भी कुछ समझ पाता शेर ने महाराजा रणजीत सिंह जी को जमीन पर गिरा दिया। जैसे ही शेर हमला करता हरिसिंहजी ने दुगनी फुर्ती दिखाते हुए निहत्थे ही शेर के मुँह को दबोच लिया और उसे दूर फेंक दिया इसके बाद तलवार से उसका शिरच्छेद कर दिया। हरिसिंह के इस अद्भुत शौर्य और साहस को देखते हुए महाराजा रणजीत सिंह जी ने हरिसिंह जी को कहा अरे तुम तो नलवा (राजा नल के समान वीरता दिखाने वाला) हो| इसके बाद उन्हें नलवा के उपनाम से ही पुकारा जाने लगा और आगे जाकर सरदार की उपाधि भी मिली।*

🚩 *इस घटना के बाद हरिसिंह जी नलवा ने कभी मुड़कर नहीं देखा और न केवल महाराजा रणजीत सिंह जी के सबसे प्रमुख सेना नायको में आपने अग्रणी स्थान प्राप्त किया वरन विश्व के महानतम सेना नायको में उनका नाम आता हैं। उनने जीवन में कठिन परिस्थितियों में कई युद्ध लडे और उनमें विजय प्राप्त की। उनके द्वारा लडे गए प्रमुख युद्धों में मुल्तान युद्ध, जमरूद युद्ध और नोशेरा के लिए किये गए युद्ध हैं। 1813 से लेकर 1823 तक दस साल तक किये गए युद्धों में उन्होंने कश्मीर, अटक, मुल्तान और पेशावर को जितने में महत्वूर्ण योगदान दिया और विजय अभियान को सफलतापूर्वक संपन्न किया। सन 1824 तक नलवाजी के नेतृत्व में महाराजा रणजीत सिंह जी का अधिपत्य कश्मीर, मुल्तान, और पेशावर तक हो गया और जालिम मुस्लिम आक्रमणकारियों से जनता को मुक्त करवाया। मुल्तान के युद्ध में नलवाजी ने महाराजा रंजीतसिंह जी के कहने पर आत्मबलिदानी दस्ते का नेतृत्व करके विजय सुनिश्चित करवाई।*

🚩 *आज के पाकिस्तान और अफगानिस्तान उस समय कई स्वतंत्र प्रदेशो में बटे हुए थे और इन जगहों पर खूंखार कबीलों और निर्दयी मुस्लिम बादशाहों का राज था। महाराजा रंजीतसिंह जी ने हरिसिंह नलवाजी की काबिलियत को देखते हुए उन्हें अपना सबसे बड़ा सेना नायक बनाया और इन प्रदेशो को जितने की कमान सौंपी। नलवाजी ने अद्भुत शौर्य और रणकौशल का प्रदर्शन करते हुए इन सभी विखंडित प्रदेशो को कुछ ही वर्षो में खालसा साम्राज्य में मिला दिया। इसके लिए उन्हें कई भयंकर युद्ध करने पड़े किन्तु उनके रणकौशल और शक्ति के आगे कोई टिक न सका। वे शत्रुओ पर बिलकुल भी रहम नहीं करते थे और उनकी इसी खासियत के चलते शत्रु उनसे डरकर भागते थे। अफगानिस्तान के बादशाह के भाई सुल्तान मुहम्मद का शासन पेशावर पर था। महाराजा रंजीतसिंह जी के आदेश पर जब हरिसिंह नलवा ने पेशावर पर आक्रमण किया तो इसकी सुचना पाते ही सुल्तान मुहम्मद थर-थर कांपने लगा और युद्ध किये बिना ही भाग खड़ा हुआ। इच्छाशक्ति और दृढ़ता हरिसिंह नलवाजी के गहने थे। ऐसा कहा जाता हैं एक बार बारिश के समय पेशावर के किले से नलवाजी ने देखा की बारिश के कारण घरो की छत की मिट्टी बह रही थी तो लोग अपने घरो की छत को ठोकते-पिटते जिससे मिट्टी का बहना रुक जाता। ये देखकर नलवाजी ने गौर किया की अफगान की मिट्टी का मिजाज ही ऐसा हैं की ठोकने और पीटने से ही ये ठीक रहती हैं उसके बाद से उन्होंने खूंखार और लड़ाकू कबीलों को उन्ही की भाषा में ठोक-पीटकर नियंत्रण में रखा और सफलतापूर्वक राज्य चलाया।*

🚩 *उत्तर भारत का क्षेत्र मुस्लिमों और मुगलों के द्वारा मचाई गयी 800 साल की तबाही, बलात्कार, जबरन धर्मान्तरण और लूटमार से त्रस्त था। ऐसे समय में महाराजा रंजीतसिंहजी के सफल नेतृत्व में सिक्ख साम्राज्य की स्थापना हुई और नलवाजी जैसे सफलतम सेना नायक के कुशल नेतृत्व में अफगानिस्तान जैसे दुर्गम प्रदेश जो खूंखार और लड़ाकू कबीलों से पटा हुआ था पर विजय प्राप्त कर धर्म की स्थापना हुई। हरिसिंह नलवाजी अपने जीवनकाल में इन खूंखार कबीलों में आतंक का पर्याय बन गए थे, ये क्रूर कबीले भी नलवाजी के नाम से थर-थर कांपते थे। ऐसा कहा जाता हैं की जब इन कबीलों में जब कोई बच्चा सोता नहीं था तो माँ अपने बच्चे को सुलाने के लिए कहती थी सो जा वरना नलवा आ जायेगा।*

🚩 *बढ़ते हुए मुस्लिम और अफगानी कबीलों के हमलो को रोकने के लिय नलवाजी के नेतृत्व में जमरूद में एक अभेद किलेका निर्माण करवाया। यद्यपि यहाँ सिक्ख साम्राज्य स्थापित हो चूका था किन्तु यदा-कदा मुस्लिम और अफगानी कबीले रुक-रूककर आक्रमण किया करते थे किन्तु इस किले के निर्माण के बाद यह मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए कब्रगाह सिद्ध हुआ। ऐसे ही 30 अप्रैल 1837 में एक अफगानों ने पूरी शक्ति के साथ जमरूद पर आक्रमण किया, उस समय हरिसिंह नलवा बीमार थे। इस बीमारी की अवस्था में भी नलवाजी ने अपनी तलवार और युद्ध कौशल से अफगानी आक्रमणकारियों के दांत खट्टे कर दिए और 14 तोपों को छीन लिया किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था। शत्रु पक्ष से दो गोली नलवाजी के सीने में लगी और प्राणघातक सिद्ध हुई, नलवाजी वीर गति को प्राप्त हुए। इतना होने पर भी यह नलवाजी का कुशल नेतृत्व ही था की इस युद्ध में भी अफगानों को हार का ही सामना करना पड़ा।*

🚩 *पूजनीय गुरु गोविन्दसिंहजी द्वारा 1699 में स्थापित “खालसा” पंथ जो पञ्च तत्व (केश, कंघा, कदा, कच्चा और किरपाण) धारण करने वाली संत सैनिको की संघठित फ़ौज थी जिसमें शामिल होने वाला व्यक्ति “खालसा” या “अमृतधारी” कहलाता था। नवलाजी उसी महान “खालसा” परंपरा के श्रेष्ठतम संवाहको में से एक थे। उनके रण कौशल और साहस के कारण ही दुर्जेय और दुर्गम अफगानिस्तान पर महाराजा रंजीतसिंहजी के नेतृत्व में धर्म प्रणित सिक्ख साम्राज्य को आपने सफलतापूर्वक स्थापित किया। यह वह प्रदेश था जिसे ब्रिटिश, रशियन और अमेरिकन भी जीत न सके थे। यही वह कारण है की उनकी गिनती भारत ही नहीं विश्व के महानतम सेना नायको में की जाती हैं।*

🚩 *उनकी उपलब्धियों के कारण ही सर हेनरी ग्रिफिन ने हरिसिंह नलवा को “खालसा जी का चैंपियन” के नाम से संबोधित किया था| ब्रिटिश इतिहासकारों ने भी उनकी तुलना नेपोलियन के प्रसिद्ध सेना नायको से की थी किन्तु दुर्भाग्य से स्वतन्त्र भारत के इतिहास में आपको यथोचित स्थान न मिल सका जिसके वे अधिकारी थे। भारतीय समाज उनके इस अतुलनीय योगदान के लिए हमेशा आपको याद करता रहेगा।* - पुष्यमित्र जोशी

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