Wednesday, October 31, 2018

मीडिया ही है लोगों का असली दुश्मन : अमेरिकी राष्ट्रपति

31 October 2018

🚩पूरी दुनिया में आम लोगों के साथ बड़ी-बड़ी प्रसिद्ध हस्तियों तथा बुद्धिजीवियों का भी भरोसा मीडिया से उठ रहा है, जिस तरह से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया टीआरपी और पैसे की अंधी दौड़ में झूठी, मनगढ़ंत खबरें दिखा रही है इससे जनता का विश्वास खत्म होता जा रहा है ।

🚩कई महत्वपूर्ण और लोगों को जागरूक बनाने वाली खबरें तो हर गली, गाँव , शहर में होती हैं परन्तु ऐसी खबरों को दरकिनार कर दिया जाता है लेकिन किसी एजेंडे को लेकर जो खबरें दिखाई जाती हैं उस पर डिबेट बैठेगी, ब्रेकिंग न्यूज़ चलेगी, अलग-अलग अनेक मनगढ़ंत कहानियां भी बनेंगी लेकिन आम जनता की परेशानियों को उजागर करती हुई एक भी खबर मीडिया में देखने को नहीं मिलती । ऐसी परिस्थिति में अमेरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बात सहीं बैठ रही है कि मीडिया ही लोगों का असली दुश्मन है जो आम जनता की परेशानियां न बताकर, बनी बनाई झूठी खबरें दिखाती है ।
Media is the real enemy of people: US President


🚩आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ दिनों पहले ही अमेरिका के पिट्सबर्ग में हुई गोलीबारी की घटना को लेकर दिए एक बयान में मीडिया को ही जनता का असली दुश्मन बता दिया है । राष्ट्रपति ट्रम्प ने यह बयान हाल ही में इस मामले को लेकर आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया है । इस दौरान उन्होंने कहा कि अमेरिका का मीडिया पिछले कुछ सालों से ख़बरों को बहुत तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है और हर घटना के लिए मुझे (ट्रम्प को) और मेरे प्रशासन को ही जिम्मेदार ठहरा रहा है ।

🚩इस दौरान ट्रम्प ने यह भी कहा कि देश में फर्जी खबरों और गलत रिपोर्टिंग की वजह से जनता में बेवजह  आक्रोश बढ़ता जा रहा है इसलिए यह मीडिया की जिम्मेदारी बनती है कि वो खुली शत्रुता को बंद कर के जनता के सामने सटीकता और निष्पक्षता से ख़बरों को पेश करे ।

🚩आपको बता दें कि इसके पहले भी ट्रंप ने बयान दिया है कि, 'मीडिया के लोग धरती पर मानव जाति में सबसे बेईमान हैं ।' 

अभी तक तो भारत में अनगिनत लोगों द्वारा मीडिया के खिलाफ आवाज उठाई गई थी लेकिन अब अमेरिका के राष्ट्रपति ने भी मीडिया की पोल खोल के रख दी ।

🚩अब मीडिया वालों की दोगली एवं कपट भरी रणनीति का चेहरा दुनिया के सामने आ चुका है ।

मीडिया चैनल्स को हर घंटे में सुर्खियां चाहिए और ऐसे में हर बार खबरों को नए ढंग से पेश करने की होड़ मच जाती है। इससे असली खबरें कहीं खो सी जाती हैं और उन्हें गलत ढंग से पेश किया जाता है इसलिए अब मीडिया से लोगों को नफरत सी हो रही है।

🚩इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया ने आज स्वतंत्रता के नाम पर पैसे और टीआरपी के लिए झूठ परोसना चालू कर दिया है, कहीं की घटना कहीं पर दिखाने लगे हैं । किसी भी न्यूज को अपने फायदे के लिए तोड़-मरोड़ कर दिखाते हैं । अब तो डिजिटल युग है उसमें किसी भी वीडियो या ऑडियो या अन्य चीजों में कुछ भी छेड़छाड़ करके दिखाया जाता है , मीडिया आज उसका भरपूर दुरुपयोग कर रही है । उसमें भी मुद्दा यदि हिंदुत्व का हो या किसी हिंदुत्वनिष्ठ हो तो उसके खिलाफ तो झूठी कहानियाँ तो और मिर्च-मसाला डाल जमकर दिखाते हैं ।

🚩सुदर्शन न्यूज़ चैनल के मुख्य सुरेश चव्हाणके जी ने कई बार बताया है कि अधिकतर मीडिया को ईसाई मिशनरियों की वेटिकन सिटी और मुस्लिम देश जैसे  अरब, दुबई आदि से फंडिग होती है, जिससे वे हिन्दू संस्कृति तोड़ने के लिए हिन्दुओं के आस्था स्वरूप हिन्दू साधु-संतों के प्रति भारत की जनता के मन में नफरत पैदा करने का काम करते हैं । वे हिन्दुओं के मन में ये डालने का प्रयास करते हैं कि आपके धर्मगुरु तो अपराधी हैं आप हिन्दू धर्म छोड़कर हमारे धर्म में आ जाओ । ये उनकी थ्योरी है जबकि वे मौलवी और ईसाई पादरियों के कुकर्म नहीं बताते ।

🚩भारतीय मीडिया हमेशा से हिंदू विरोधी न्यूज दिखाकर समाज को गुमराह करती आ रही है शायद इस एजेंडे के पीछे का मकसद भारत में रहकर भारत की संस्कृति को बर्बाद कर देना ही है ।

🚩अतः ऐसी बिकाऊ मीडिया चैनल्स को ब्लॉक कर दीजिये और अखबार खरीदना बन्द करिये जिससे उनको पता चले कि जनता अब जागृत हो चुकी है ताकि वो झूठी ख़बरे दिखाना बन्द कर दे और लोगों तक सच्चाई पहुँच सके ।

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Tuesday, October 30, 2018

जानिए लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का इतिहास और उनके महान कार्य

30 अक्टूबर 2018 

🚩सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे । भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृहमंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने । बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की । आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है ।
Know the history of Iron Man Sardar Vallabh Bhai Patel and his great work

🚩1857  के स्वातंत्र्य-समर में युवा झवेरभाई ने बड़ी वीरता के साथ अंग्रेजों को चुनौती दी थी । वल्लभभाई के बड़े भाई विट्ठलभाई भी प्रसिद्ध देशभक्त थे । वल्लभभाई को निर्भयता व वीरता के संस्कार तो खून में ही मिले थे । वल्लभ भाई की निर्भयता से जहाँ बड़ों के सिर हर्ष व गर्व से ऊँचे हो जाते थे, वहीं छोटे भी उन्हें बेहद चाहते थे । स्वभाव से ही वे अन्याय के खिलाफ थे । अपने सहयोगियों के कल्याण में उनकी प्रामाणिक दिलचस्पी थी ।

🚩जीवन परिचय

पटेलजी का जन्म नडियाद गुजरात में 31 अक्टूबर 1875 को एक लेवा कृषक #परिवार में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्ठल भाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई । लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे । महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया ।

🚩खेड़ा संघर्ष

स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान खेड़ा संघर्ष में हुआ । गुजरात का खेड़ा खण्ड (डिविजन) उन दिनो भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।

🚩बारडोली सत्याग्रह

बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिये ही उन्हे पहले #बारडोली का #सरदार और बाद में केवल सरदार कहा जाने लगा।

🚩आजादी के बाद

यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियां पटेल के पक्ष में थी, गांधी जी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अपने को दूर रखा और इसके लिये नेहरू का समर्थन किया । उन्हें उपप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री का कार्य सौंपा गया किन्तु इसके बाद भी नेहरू और पटेल के सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे । इसके चलते कई अवसरों पर दोनों ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी ।

🚩गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी #रियासतों (राज्यों) को #भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पड़ी । भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत के लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है। सन #1950 में उनका #देहान्त हो गया। इसके बाद नेहरू का कांग्रेस के अन्दर बहुत कम विरोध शेष रहा।

🚩देसी राज्यों (रियासतों) का एकीकरण

सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पीवी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। किन्तु नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है।

🚩गांधी, नेहरू और पटेल

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। यद्यपि दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी परंतु सरदार पटेल वकालत में पं॰ नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था। नेहरू प्राय: सोचते रहते थे, सरदार पटेल उसे कर डालते थे। नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी परंतु उनमें किंचित भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, "मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरी। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।" नेहरू को गांव की गंदगी, तथा जीवन से चिढ़ थी। नेहरू अंतरराष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे ।

🚩देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उप-प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे । #सरदार पटेल की महानतम देन थी #562 छोटी-बड़ी #रियासतों का #भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना । विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो । 

🚩5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है । उसी दिन वे परेशान हो उठे । उन्होंने अपना एक थैला उठाया, वी.पी. मेनन को साथ लिया और चल पड़े । वे उड़ीसा पहुंचे, वहां के 23 राजाओं से कहा, "कुएं के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ।" उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई। फिर नागपुर पहुंचे, यहां के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुंचे। वहां 250 रियासतें थी। कुछ तो केवल 20-20 गांव की रियासतें थीं। सबका एकीकरण किया। एक शाम मुम्बई पहुंचे। आसपास के राजाओं से बातचीत की और उनकी राजसत्ता अपने थैले में डालकर चल दिए। पटेल पंजाब गये। पटियाला का खजाना देखा तो खाली था। फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि "क्या मर्जी है?" राजा कांप उठा। आखिर 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया तथा जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 13 नवम्बर को सरदार पटेल ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया। न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई, जैसा कि डराया जा रहा था।

🚩जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी । महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, "रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।"

🚩यद्यपि विदेश विभाग नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परंतु कई बार उप प्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में उनका जाना होता था। उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता । 

🚩1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था । अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा। 1950 में नेपाल के संदर्भ में लिखे पत्रों से भी नेहरू सहमत न थे। 1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लम्बी वार्ता सुनने के पश्चात सरदार पटेल ने केवल इतना कहा "क्या हम गोवा जाएंगे, केवल दो घंटे की बात है।" नेहरू इससे बड़े नाराज हुए थे। यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती।

🚩गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता।

🚩सरदार पटेल जहां पाकिस्तान की छद्म व चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे । विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे । अनेक विद्वानों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे । लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था "बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं । यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते। पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे । उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी । वे केवल सरदार ही नहीं बल्कि भारतीयों के ह्रदय के सरदार थे ।

🚩महान आत्माओं की महानता उनके जीवन - सिद्धांतों में होती है । उन्हें अपने सिद्धांत प्राणों से भी अधिक प्रिय होते हैं । 

🚩सामान्य मानव जिन परिस्थितियों में अपनी निष्ठा से डिग जाता है, महापुरुष ऐसे प्रसंगों में भी अडिग रहते हैं । सत्य ही उनका एकमात्र आश्रय होता है, वे फौलादी संकल्प के धनी होते हैं । उनका अपना पथ होता है, जिससे वे कभी विपथ नहीं होते ।
सरदार वल्लभ भाई पटेल जिन्हें देश ‘लौह पुरुष के नाम से भी जानता है, ऐसे ही एक वल्लभ भाई थे ।

🚩उनके जीवन का यह प्रसंग उनके इसी सद्गुण की झाँकी कराता है ।
वल्लभ भाई अपने पुत्र-पुत्री को शिक्षा हेतु यूरोप भेजना चाहते थे । इस हेतु रुपये भी कोष में जमा कर दिये गये थे लेकिन ज्यों ही असहयोग आंदोलन की घोषणा की गयी, त्यों ही उन्होंने पूर्वनिर्धारित योजना को ठप कर दिया ।

🚩उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि ‘चाहे जो हो, मैं मन, वचन और कर्म से असहयोग के सिद्धांतों पर दृढ़ रहूँगा । जिस देश के निवासी हमारी बोटी-बोटी के लिए लालायित हैं, जो हमारे रक्त-तर्पण से अपनी प्यास बुझाते हैं, उनकी धरती पर अपनी संतान को ज्ञानप्राप्ति के लिए भेजना अपनी ही आत्मा को कलंकित करना है । भारत माता की आत्मा को दुखाना है ।

🚩उन्होंने सिर्फ सोचा ही नहीं, अपने बच्चों को इंग्लैंड में पढ़ाने से साफ मना कर दिया । ऐसी थी उनकी सिद्धांत-प्रियता । तभी तो थे वे #लौह पुरुष है।

#वल्लभ भाई पटेल को सन 1991 में मरणोपरान्त #भारत रत्न से #सम्मानित #किया गया है ।

🚩पटेल के प्रति हरिवंशराय बच्चन के उदगार...
यही प्रसिद्ध लौहपुरुष प्रबल,
यही प्रसिद्ध शक्ति की शिला अटल,
हिला इसे सका कभी न शत्रु दल,
पटेल पर, स्वदेश को गुमान है ।
सुबुद्धि उच्च श्रृंग पर किये जगह,
हृदय गंभीर है समुद्र की तरह,
कदम छुए हुए ज़मीन की सतह,
पटेल देश का, निगहबान है।
हरेक पक्ष के पटेल तौलता,
हरेक भेद को पटेल खोलता,
दुराव या छिपाव से इसे गरज ?
कठोर नग्न सत्य बोलता ।
पटेल हिंद की नीडर जबान है ।

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Monday, October 29, 2018

ईसाई स्कूल में हिंदी में बात किया तो दी गयी घिनौनी सजा...

29 October 2018

🚩कई बार मुहावरा सुनने में आता है कि "अंग्रेज तो चले गए लेकिन आने वंशज यहीं छोड़ गए" । यही बात आज पूर्णतः लागू होती है क्योंकि हमारे भारत देश में से अंग्रेज तो चले गए लेकिन मैकाले की शिक्षा पद्धति आज भी चल रही है, उनका एक ही लक्ष्य था कि भले हम चले जाएं लेकिन भारतीय दिमाग से हमारे गुलाम बने रहे ।

🚩हमारे भारत में जितने भी कॉन्वेंट स्कूल में मैकाले की शिक्षा पद्धति से चल रहे हैं, उन स्कूलों में बच्चे न तो
तिलक और न ही मेंहदी लगा सकते हैं, हिन्दू त्यौहार नही मना सकते और यहां तक कि हिंदी भी नहीं बोल सकते,  मतलब कि बच्चो को कोई स्वतंत्रता नहीं  है।

🚩कितने दुःख की बात है कि जहां कभी महात्मा चाणक्य तथा महाबली योद्धा चन्द्रगुप्त ने हिंदुत्व का परचम लहराया, वहां एक छात्र ने मातृभाषा हिन्दी में बात की तो मानो उसने गुनाह कर दिया जिसकी उसे सजा दी गयी है और सजा भी ऐसी कि इंसानियत भी शर्मसार हो जाए । मामला बिहार के नालंदा जिले का है जहाँ के एक ईसाई स्कूल में हिन्दी बोलने पर प्रिंसिपल ने छात्र का सिर मुंडवा दिया । इसके बाद से छात्र ने स्कूल जाना बंद कर दिया । घटना की जानकारी परिजनों को मिलने के बाद उन्होंने थाने में मामला दर्ज करवाया ।
If you talked to a Christian school in Hindi,
 then the condemned punishment ...

🚩एक वक्त था जब नालंदा में दुनियाभर से लोग पढ़ने-पढ़ाने के लिए आया करते थे, वहां के हाल अब इतने बेहाल हैं कि हिन्दी बोलने पर सजा दी जाती है । बिहार थाना क्षेत्र के खंदकपर में छात्र के साथ घटना मामला इसका जीवंत उदाहरण है । यहां संत जोसेफ अकादमी में हिंदी बोलने पर एक छात्र का मुंडन करा देने का मामला सामने आया है । नवमीं के छात्र सन्नी राज के अनुसार स्कूल में अंग्रेजी में ही बात करने का नियम है । इसका पालन न करने पर बच्चों को फाइन देना होता है और पैसे न भर पाने की स्थिति में सिर मुंडवा दिया जाता है । 

🚩गुरुवार को जब छात्र स्कूल पहुंचा तो साथियों से हिंदी में बात कर रहा था, ये देखकर प्रिंसिपल बाबू टी थॉमस काफी नाराज हो गए । उन्होंने छात्र को जबानी सजा देने के बजाए उसे स्कूल के गार्ड के साथ जबर्दस्ती सैलून भेजकर उसका सिर मुंडवा दिया । इस घटना से सकते में आया छात्र अगले दिन स्कूल नहीं गया । उसका मुंडा हुआ सिर और गुमसुम व्यवहार देखकर परिजनों ने जब पूछताछ की तो ये मामला सामने आया । गुस्साए परिजनों ने इस मामले को लेकर एसडीओ सदर, डीईओ समेत अन्य वरीय अधिकारियों को लिखित शिकायत दर्ज कराते हुए कार्यवाही की मांग की है । स्त्रोत : सुदर्शन न्यूज़

🚩भारत में आजकल बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने का प्रचलन बहुत चल रहा है सभी का कहना है कि बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में भेजो, लेकिन वास्तव में उनके माता-पिता कॉन्वेंट स्कूल का सच नहीं जानते है इसलिए अपने बच्चों को भेजते हैं । कान्वेंट स्कूलों के मामले में एक बात तो साफ तौर पर कही जा सकती है कि "दूर के ढोल सुहावने" । 

🚩भारत मे कॉन्वेंट स्कूलों की स्थापना...

भारत से लॉर्ड मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी : “ मैंने जो कॉन्वेंट स्कूलों की स्थापना की है, इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में, संस्कृति के बारे में, परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, जब ऐसे बच्चे भारत में होंगे तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ लेकिन इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।”

🚩उसने कहा था कि ‘मैं यहाँ (भारत) की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे... मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे... माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे, साधु-संतों से नफरत करेंगे... वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे..!'

🚩उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ-साफ दिखाई दे रही है, आज कॉन्वेंट स्कूल की शिक्षा पद्धति के कारण JNU जैसी यूनवर्सिटी में छात्र हिन्दू देवी-देवताओं को ही गालियां दे रहे हैं, दारू पी रहे हैं, मांस खा रहे हैं, दुष्कर्म कर रहे हैं, बॉलीवुड, मीडिया ,टीवी सीरियलों में लोग हिन्दू तो दिखते हैं लेकिन दिलोदिमाग से अंग्रेज होते जा रहे हैं इसलिए हिन्दू देवी-देवताओं, साधु-संतों, हिन्दू त्यौहारों के खिलाफ हो गए हैं ।

🚩भारत ने वेद-पुराण, उपनिषदों से पूरे विश्व को सही जीवन जीने की ढंग सिखाया है । इससे भारतीय बच्चे ही क्यों वंचित रहे ?

जब मदरसों में कुरान पढ़ाई जाती है, मिशनरी के स्कूलों में बाइबल तो हमारे स्कूल-कॉलेजों में रामायण, महाभारत व गीता क्यों नहीं पढ़ाई जाए ?

🚩जबकि मदरसों व मिशनरियों में शिक्षा के माध्यम से धार्मिक उन्माद बढ़ाया जाता है और हिन्दू धर्म की शिक्षा देश, दुनिया के हित में है ।

सभी हिन्दू अभिभावकों को भी #कॉन्वेंट #स्कूल में हिन्दू छात्रों पर पड़ने वाले #गलत #संस्कारों तथा उनके साथ हो रही प्रताड़ना को देखते हुए अपने बच्चों को वहां नहीं भेजना चाहिए । #कॉन्वेंट #स्कूल का संपूर्ण #बहिष्कार #करना #चाहिए ।

🚩एक दो घटनाएं ऐसी भी सामने आई हैं कि जिसमें छात्रा ने कॉन्वेंट स्कूल प्रशासन के ‘टाॅर्चर’ के कारण आत्महत्या कर ली और एक विद्यार्थी कूद गया । कर्इ घटनाआें में यह सामने आया है कि किसी भी अपयश, ब्लू व्हेल जैसे गेम्स या किसी प्रकार की ‘टॉर्चर’ की कारण बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं । 

🚩इसका मूल कारण है उनमें सुसंस्कारों का अभाव । यदि आप अपने बच्चों को अच्छे संस्कारी बनाना चाहते हैं तो कॉन्वेंट स्कूल में बच्चों को पढ़ाना बन्द करें और गुरुकुलों में पढ़ाना शुरू करदें।

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